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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. १३ याव्या वनह मकार रे, देव करे जयकार रे ॥ स ॥३॥ प्रजुचरणे कर जोडिने, कहे वजायुध नूप रे ॥ तारो त्रिनुवन तातजी, तहारुं अकल स्वरूप रे । पडिया जवजल कूप रे, तुं अवलंबनरूप रे ॥ केवलज्ञान अनूप रे, टाल्यो मोह विरूप रे ॥ स० ॥ ॥ ले दीक्षा प्रजुजी कने, वजायुध नरदेव रे ॥ राज्य तजी समता नजी, थथा तता धर्मदेव रे॥ सारे सुर नर सेव रे, नवि राखे अहमेव रे, साची जेहनी टेव रे, अहोनिश चरणनी हेव रे ॥ स ॥ ५ ॥ शम दमवंता रे साधु जी, विचरे मही ततकाल रे ॥ जय विहारने आदरी, पाले मुनि उजमाल रे ॥ षट कायना प्रतिपाल रे, विपयथकी मन वाल रे, मदने मीण ज्युं गाल रे, वयण न नांखे आल रे ॥ स ॥ ६ ॥ एक दिन मुनिवर आवीया, वजायुध ज्ञपिराय रे ॥ सिद्धगिरिनी हो ऊपरें, रहिया कानस्सग्ग वाय रे ॥ वज परें दृढकाय रे, टाव्या उरित अपाय रे, एकाकी असहाय रे, ध्यान धर्म चित्त लाय रे ॥ स ॥ ७ ॥ एक वरस पडिमा तणो, अनियह मनमाहे धार रे ॥ मेरु शिखर जेम स्थिर रह्या, वजमुनि गुणधार रे ॥ सूधा श्रीय एणगार रे,वंदू ढुं वारो वार रे,धन्य तेहनो जमवार रे,गुणमणिरयण नंमार रे ॥सा एहवे हयग्रीव सुत ढुंता, मणिकुंन मणिध्वज नाम रे॥ वदु नव जमता रे ते दुवा, सुर अनुपम तनु धाम रे ॥ तिण दीठो मुनि ताम रे, रह्यो निश्चल एक ठाम रे, जाग्युं वैर निकाम रे, करे उपसर्ग उद्दाम रे ॥ स० ॥ ए ॥ तीखी दाढे फाडता, मुख नीपण विकराल रे ॥ एक सिंह दूजो रे वाघलो, यश् याव्या ततकाल रे ॥ पडिया मुनिने ख्याल रे, दंतें नखेडे खाल रे, मुनि चिंते उजमाल रे, रखे जीव थाये सुकुमाल रे ॥ ॥ स ॥ १० ॥ मुनिवर धारा हो ध्याननी, तिम तिम वाधे रे जोर रे ॥ हाथी थ६ वली आविया, साथै बिद्ध करे सोर रे ॥ गुंदे दंतनी कोर रे, जीव तुं धाजे कठोर रे, सुःख सह्यां नरके घोर रे, कीधां कर्म ए दोर रे ॥ स ॥ ११ ॥ थया वली साप ने सापिणी,फण मांमी फुफुयाड रे ॥ थावी समीपं दो साधुने,पग वींटे जिम जाड रे ॥ कड कड लांजे हो हाड रे, मुनि रह्या ध्यानगुं माम रे, नाखे कर्म उपाड रे, पूरे मनहरुहाड रे ॥ स० ॥ १२ ॥ धन्य बजायुध साधुजी, नहिं मन रागनो अंश रे ॥ दूर करयो तिम क्रोधने, दीपायो निजवंश रे ॥ सकस मुनि अव
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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