SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शांतिनायनो रास खंग चोया : द्राम ॥ सुग्गो० ॥ श्रांकणी ॥ स्वागत पूती नृप घणु जी. दीर्छ बटु गन्मान ॥ पर्पदमाहे प्रशंतीयो जी,मबलो बुझिनिदान ।। सु० ॥ ५ ॥ बद्ध रत्ना वसुधा कदी जी, तेदमा नहिं नंदेह ।। नीतिशास्त्रमा एवं जी, बचन कार्य पनि नेह ॥१०॥३॥ यतः ॥ दाने तपसि जायें च, वि ज्ञान बिनये नये । विस्मयोनव कर्तव्यो, बहुग्दा वसुंधरा ॥१॥ वाजिवारणलोहानां, काष्ठपापागवाससाम् ॥ नारीपुरुपतोचाना, मंतरं मह दंतरम ॥ ५ ॥ पूर्वढाल | अंगरदक करी थापियो जी, रोहाने तिण रान ॥ नृप कपटें सूती तदा जी, ते सूतो नादात ।। सु० ॥ ४ ॥ पढेले पहारे जगादीयों जी, गेहा गंधेरे केम ॥ चिंतुं ९ कहो काग करे जी, बकरी तीमी एम नागो ॥ ५ ॥ कदे गेहा मुफ भागने जी, जो जाणी होय बात ॥ कहे गजन इम जागिवें जी. एहने कोठे बात ।। सुम् ॥ 11) बीजे पीपल पाननाजी, न्यादि अंत गुरुनाव ।। नृप पूरे निर्णय को जी. एबेदु नरवे नाव ॥ ॥ ॥ तिमहीज जीजा चाममा जी. पिलदडी मंद ॥चत व्याम तनु पुरानो जी, सम पण हे गण गेह ॥ २५ ॥ 7 ॥ नोये प्रहर कंटके जीवाध्या बोले ताम । पूर्व काही मुगा केटला जी,जनक नन्दाग म्यामि ॥ नु० ॥॥पापीj वा जीयो जी, केना जनक दवंत ॥ सत्य कई नादरेजी, पंच जनक ने संत ।मु०॥१७॥ ते केदा कहे गजची जी, धनद रजक अतिदोय ॥ कई मानंग पांचमी जी, पनमा जव न कोय ॥ ॥ !! | कई नृप में केम जागीयानी. तुज गुपची गनिंद ने गुण कदा नर कडे, जी, गेलो परिमानंद ॥ १० ॥22॥ परजा पाने नृप सी जी, धनद यो धनधान र मर भनने हरेजी.कंटक यतिनं निदान ॥501) गाट कोप करवायही जी, फलैंचंगाल नरेश । निमय करता मायने जी, याची प मशीन ॥ ५ ॥ १४ मार कई माया पीजी, मम गाने सांप दीन । बजार प्रति ममजीपी जो, परिमन गEिure 14 | ग सामान्या जी, शनमंत्रीमान मुख्य ॥ नहने की ही , म्या प क्ष. | F ॥ यदि जी पर म जी, नागंन । गोपनी जी. दात माग !! 20, म ! बा INTER
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy