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________________ १४ जैनकथा रत्नकोप नाग आठमो. शुचिमनोयद्यस्ति तीर्थेन किम् ॥ सौजन्यं यदि किं निजैः स्वमहिमा यद्यस्ति किं मंझनैः, सहिद्या यदि किं धनैरपयशोयद्यस्ति किं मृत्युना ॥ ५॥ पूर्व ढाल ॥ वन उपाडी मारण धायो रे, वचमां पुरुचे मंत्री साह्यो रे । समकाव्यो मान ए वयण रे, नहिं हां कोई ताहरो सयण रे॥ १४ ॥ कुमरें देवती वाणी संजारी रे, नावि जाण्यं मन निरधारी रे ॥ मन पाखें मानी ए वात रे, हरख्यो मंत्री साते धात रे ॥ १५ ॥ वजडावे नोबत निशाण रे, बोले वंदीजन कल्याण रे ॥ गाये गोरी गीत सुजाण रे, चिरं जीवो कुंवर कुलनाण रे ॥ १६ ॥ हर्ष धरी कुंवर न्हवरावे रे, नूपण वस्त्र ने पहेरावे रे ॥ सदु कहे धन जिए माडीयें जायो रे, बहु दिवस अमें दरिसण पायो रे ॥ १७ ॥ हरख्यो साजन खंद विशेखी रे, कुमरतj मुखपंकज देखी रे ॥ सातमी ढालें वात वखाणी रे, आखर वहेशे ढालें पाणी रे ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ १७ ॥ गाथा तथा श्लोक ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ कुमर कहे कर जोडीने, मंत्रीसरने डेक ॥ को न करे ते में कयुं, बात सुपो हवे एक ॥ १ ॥ जे थापे मुझने नृपति, अर्थ गरथ नंमार || ते सवि लेगुं दुं सही, एम कीधो निर्धार ॥ ॥ वस्तु उजेणी मारगें, लेई थापजो सर्व ॥ सचिवें सघ मानियुं, मनमां था निर्गवं ॥ ३ ॥ जन्मदिवस आव्यो निकट, वाज्यां मंगलवूर ॥ वरत्या उत्सव बदु परें, . सद्मन आनंदपूर ॥ ४ ॥ ॥ढाल आतमी॥ ॥ देशी सोहेलानी ॥ हवे कुलवंती नारी, महान करावे मंगलकलशनें जी ॥ ले उर उपर सार, निर्मल जल नरे सोवन कलशने जी ॥ १॥ । पहेरावे सुकुमाल, अंगें अनुपम वस्त्र सोहामणां जी ॥ दीपे सुंदर वेप, जपणनपित अंग रलियामणां जी ॥ ॥ बेसारी गजबंध, फुलतो चाले कोतल बागलें जी ॥ सावेला सें व६, वाघे केसरीये आगे चले जी ॥३॥ टोले मलि मलि थोक, योकें थोकें करे एम वातडी जी ॥ त्रैलोक्यसुंदरी धन्य, विधिना ए सरखी जोडी घडी जी॥४॥ पग पग नाचे पात्र, यात्र करेवा जन बहु उलट्यां जी ॥ उंचां करि करि गात्र, दरिसा देखण न गणे गजघटा जी ॥ ५॥ बहु धामंवर एम,
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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