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________________ ए जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. २४ ॥ चोवीशमी चोथे खमें रे,ढाल पूरण राग अखंमें ॥ कहि रामविजय सुविचारी रे,धन्य ए गुणसुंदरी नारी ॥२५॥सर्व गाथा॥७१३॥ श्लोक ॥२५॥ . ॥दोहा॥ - ॥ रात्रि दिवस नेलां रहे, प्रीति परस्पर जोर ॥ मुख हरखे देखी नजरें, जेणि परें चं चकोर ॥ १ ॥ अम नयरें जलें वीया, सजान त मो सुजाण ॥ तुम ऊपर रीफे घj, अहो अमारां प्राण ॥ ३ ॥ साहूका र तुमें सही, नाम धराव्युं नित्य ।। पण अमचित्त चोरी लियु, चोर परें तुमें मित्त ॥ ३ ॥ मित्र तुमें शहां कणे रहो, मत जाशो निज धाम ॥ फर मावो अम चाकरी, जे तुम होये काम ॥ ४ ॥ ॥ ढाल पच्चीशमी॥ ॥ राजेंड़ मुने वहाला लागो ॥ ए देशी ॥ एवं अवसरे हवे सांगलो रे, रत्नसुंदरीनी वात ॥ यौवन आवी अति नली ॥ यौवन यावी अति नली ॥ एतो कामरमणी सादात ॥ १ ॥ पिताजी हो वात सुणो • मुफ सार॥ए तो गुणसुंदर जरतार ॥ पिता० ॥ महारे अवर नहिं निरधार ॥ पि० ॥ महारं नर्बु रे की, किरतार ॥ पि०॥ मुने न गमे ए पुण्यसार ॥ पि ॥ घणुं गुं कहुँ वारंवार ॥पिणा एहनी याश खिजमतगार॥पिण॥ मुफ न फरे एह विचार॥पिणावा॥ए अांकणी॥नाव लही तनया तणो रे, गुणसुंदरनी पास ॥ रत्नसार आव्यो वही॥र०॥ एतो धरी मनमां नन्नास ॥ पि०॥२॥ ऊठी आसन आपीयु रे,पूब्यु कहो मुजकाज ॥ केम करुणा कीधी इहां ॥ के० ॥अम उपर एवडी आज ॥ पिता ॥३॥ रत्नसार कहे शेवजी रे, तुमगुं हो तनया रे मुज ॥ परणवा इवे यो रे ॥ ५० ॥ एतो करवा वातनुं गुज ॥ पिता ॥ 4 ॥ गुणसुंदर चित्त चिंतवे रे, खोटी हो एहनी रे आश ॥ विदु नारी विवाहथी रे ॥ वि० ॥ एतो केम चाले घरवास ॥ पि० ॥ ५ ॥ यत्किंचित् उत्तर दे रे, वारुं दो । एहने विमास ॥ नहिंतर जे गति माहरी रे ॥ न ॥ एतो होशे ते गति तास ॥ पि ॥ ६ ॥ एम चिंती कहे शेठने रे, जे तुमें कह्यो रे विचार ॥ विण पूढे मावित्रने रे ॥ वि० ।। ए तो न होय कुल आचार ॥ पि० ॥ ७॥ वासी हुँ देशांतरी रे, नवि जाएयुं मुफ नाम ॥ तो गुणवंती. नंदिनी रे ॥तो॥ एतो केम काढी द्योग्राम ॥ पि० ॥७॥ यतः ॥ कुग्राम
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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