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________________ श्रीशांतिनाथनो रास खंक चोथो, २६ए अति जलु, लोक बसे धनवंत रे॥१॥ वा ॥ वात विचारी कीजीयें, जेम लहीये यशोवाद रे । वा ॥ यविचायुं कारज करे, जनमां लहे थ पवाद रे ॥ २ ॥ वा वाणा शत्रुदमन नामें नलो, नरपति अति विकराल रेवारत्नमाला रलियामणी, राणी अति सुकुमार रे ॥३॥वागावापा एक दिवस वेगे सना, राजकुली त्रीश रे॥वा॥ एक बटुक धाव्यो तिहां, कनो दे धाशीप रे ॥४॥वागावाव्यग्रपणे नाल्यो नहिं, सना विसर्जी ताम रे । वा० ॥ अमहर स्नान कयुं नृपें, गयो देवसेवा काम रे ॥ ५॥ वा ॥ वा ॥ फूल थाणी मुह यागलें, बटुकें कस्यां तिहां नेट रे ॥वा देवसेवाने कारणे, रायें निहाल्यो मीट रे ॥६॥ वा ॥ वा० ॥ पूढे नक तुं कोण ठो, ते कहे सुण अवनीश रे ॥वा॥ नामें शुभंकर विप्र लु, यज्ञ दत्त सुत शिरे ॥७॥ वा ॥ वा ॥ वासी थरिष्ट पुरनो सही,नव नव देश विनोद रे ।। वा० ॥ जोतो यहां आव्यो प्रनु, देखी पाम्यो प्रमोद रे ॥॥ वावादेखि विनीत सोहामणो, दिलमांहे रीज्यो राय रे ॥वा ॥ निज पासें ते राखीयो, गुगथी धादर थाय रे ॥ए ॥ वा ॥ यतः ॥ शूरस्त्यागीविनीतश्चा, कतन्नोदृढसोहदः॥ विज्ञानी स्वामिनक्तव, सर्वत्र जनते यशः ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ वा ॥ गुण देखी गौरव करयो, अंतेवर थादेश रे 11 वा० ॥ विश्वासी जाणी करी, अंतर नहिं लवलेश रे ॥ १० ॥ वा ॥ । वा० ॥ एक दिवस पुर उपवनें, श्राव्यो एक मृगराज रे ॥ चा० ॥ व्याध कहेणधी नीसम्यो, नृप चतुरंग ले साज रे ॥११॥ वा ॥ वा ॥ फोज चढी चिटुं दिशि खडी, चढी कुंजर नरसिंह रे वागावेतो गुनंकर थागलें, अंकुश ले थवीद रे॥१२॥ यावा ॥धाव्यो उद्यान उतावलो, नरपति मृगपति पास गवाणा नृप ऊपर हरिश्रावियो, उछलतो श्राकाश रे॥१३॥ वाmon ताम गुनंकर तिवे, रखे करे स्वामिविनाश रे ॥वाणा अंकुश मुरपमा पीने, कीवो सिंहनो नाश रे ॥ रवा० ॥ वा०॥ नृप शुभंकरने फहे, सई न कोई एन रे ॥ वा० ॥ मुज चिंतित ए सिंद्ने, वचमा हरिण यो जहरे ॥ १५॥ वा ॥ चा०॥ ए हातां तें माहरो, सतु नृपमां यश वाद ॥ वा० ॥ कीधो कमी तो एम सन्नी, बटुक कहे तज विरपवाद रे ११०॥ गजयनने कारण, में निहलो हरिएन रे ॥वाot निजगकर्षन चिंतव्यो, सण साहिब गुणगेह रे ॥१३॥ वाचा ॥ तुम
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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