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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंम चोयो. १६१ परिसर ऊतरीया हो, सरोवर पास सही ॥ १ ॥ सारथपति वसिया हो, के उज्ज्वल वसन कुटी ॥ ध्वजनी सहिनाणी हो, के सोहे श्वेतपटी । तिण वेला कोइक हो, के भ्रूजतो धायो । नये चंचल लोचन हो, के शरणा गत आयो ॥२॥ मुझ राखो राखो हो, के करुणा स्वामी करो ॥ दु नानो घाव्यो हो, के शरणे महेर धरो ॥ मत वीहे वोले हो, के सारयवाह इस्यो ।। मुज आगल नांखो हो, के के अपराध किस्यो ॥ ३ ॥ एह जव पूरे हो, के तावत तुरत धस्या ॥ हणो हणो वोलंता हो, के आव्या सु जट कस्या ॥ धनदत्तने नांखे हो, के मूको एह नए ॥ अपराधी नृपनो हो, के महोटो ने श्रगुणी ॥ ४ ॥ दास ए घरनो हो, के नृप बाजरण हरी ॥ वटने काजें हो, के रामत नहिं सखरी ॥ ए व्यसनज नूंमं हो, के सातेमां राजा ॥ एहने सेवंतां हो, के यंगें नहिं साजा ॥५॥ नृप वात ए जाणी हो, के धारी तेडीलीधुं तिण वेला हो, के कान करीजेडी॥ हणो स्वामी शेही हो, के व्यसनी दास जणी ॥ मूको मत एहने हो, के रायनें रीप घणी ॥ ६ ॥ करुणा मन प्राणी हो, के कहे मंत्री स्वामी ।। कारामांहे राखो हो, के कहूँ तुम शिर नामी ॥ मंत्रीश्वर वयणे हो, के तालामाहे जब्यो।मूक्यो चर चोकी हो,के ठो रह्यो मांहे पज्यो॥७॥नांजी कारागृह हो, के सेवकने निहगी। नागे तुम पासें हो, के श्राव्यो वात नणी॥ तेमाडे काढी हो, के श्रापो चोर जलो ॥ नहिंतर माटें हो, के थाशे सहिय कलो ॥ ॥ कहे सारथवाहो हो, के वात खरी तुमची ॥ शरणागत श्राएं हो के शान नहिं अमची ॥ कहे सेवक नृपना हो, के अमें न्यादेशकरा ॥ जो लोपुं पाया हो, के कोपे घमउपरि ॥ ५ ॥ धनदन उपगारी हो, के कहे तूपति पासें ॥ चालो हुँ श्रायु हो. के नृपति श्रावासें ॥ श्रावी नृप धागे हो, के कनो कर जोडी ॥ ने एक मृकी हो, के रत्नायलि रूडी ॥ १० ॥ कोण देशथी श्राव्या हो, के निरु पम व्यवहारी ।। कहो कांश अपूरब हो, के बात सबल सारी ॥ धुर हंती मांगी हो, के निज रत्नांत कयो ।। राजेबर रूडो हो, के मानव तेद नयो ।॥ ११ ॥ सुरण साहिय मोरा हो, के नोरां चरण यहूं ॥ कर सदस नीदोरा दो, के चोरने मान लडं ॥ न्यानरण तुमा हो, के तुम हाये था , रणागत स्वामी हो, के चोरने हुँ पाउं ॥ १२ ॥ कहे राजा मृकण
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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