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________________ र१६. जैनकथा रत्नकोष नाग आठमो. कुलाला वे, मरुधर गुजार चंगा ॥ ॥ चंगा देश जिहां नवरंगा, गंगा निर्मल नीर वहे ॥ काशी देश सुवेशा मानव, जिप दी आनंद लहे॥नव : नव नाषा नव नव शाखा, दाखी सुण सांई मेरे ॥ धन नवि पायो काल गमायो, देखे देश युं बहुतेरे ॥ दे ॥ ७ ॥ धूरत चिंते वे, साचु एणे नां स्युं ॥ करशे महारं वे, कारिज पासें रा ॥ ॥ राख्या पासें एम विमासे, मत फिकर मनमांहे धरे ॥ मन चाहे सो लडमी लेना, पण ... कहुँ सो तुं काज करे ॥ अंगीकार कयुं तस जांरव्यु, जाण्यो चोर ए सही " चित्तें ॥रात पडी पसयुं तम बहुलुं, तब मनमां धूरत चिंते ॥धू ॥७॥ , सुण वैदेशी वे, तस्करने जे प्यारी ॥ सन्मुख आवी वे, रयणी ए अंधारी ॥॥ रात अंधारी आपण प्यारी, ले कृपाण करमें तेरा ॥ चाल नयरमां ईश्वर घरमां, धन लावे जश् वदुतेरा ॥ सत्त्यावीशमीत्रीजे खंमें, ढाल . कही जकडी देशी ॥ याव्युं पाप उदय हवे एहनु, राम कहे सुग 'वैदेशीक ॥ ए ॥ सर्वगाथा ॥ ७७५ ॥ श्लोक तथा गाथा मत्ती॥१५ ॥दोहा॥ ॥ काढयुं खङ्गग पडिहारथी, जबके ज्योति अपार ॥ चिंते नृप एहने हां, वली मन करे विचार ॥ १ ॥ एक वार जोकं चरित, हगवो महारे हाथ ॥ एम चिंतीने चालीयो, नृपति तेहनी साथ ॥ २ ॥ धूरत मन शोचे इस्युं, नहिं खड्ग सामान्य ॥ण खतें जाएं सही, दीसे ले राजान ॥३॥ तो उपाय कांक करी, कूटी मारु राय ॥ वेदु धूर्ते धूर्तज मल्या, जोजो अ॒ हवे थाय ॥ ४ ॥ आघो जइ पानो वट्यो, कहे धूरत पुरलोक ॥ हमणां जागे ने यहां, सूजें गतशोक ॥ ५ ॥ राजायें दोय कीधला, पत्न व संस्तर ताम ॥ एकण वीशामो स्वयं, वीजे चोर हराम ॥ ६ ॥ ॥ ढाल अग्यावीशमी॥ ॥ मूकी द्यो मति दननी जी ॥ ए देशी ॥ चोर विचारे चित्तमां जी, मुक माथानो एह ॥ मुज जागतां ए केम मरे, नवि सूवे कपटनुं गेह रे - ॥ १ ॥ चोर कला नवि कीजीयें जी॥ ए यांकणी ॥ चोरीये जय नवि थाय ॥ धन मेले धती घणुं रे, प. जीवथी जाय रे ॥ चो० ॥ ॥३॥ लांवो ने जी तिवार ॥ एम तल ताके २ . रे, नर्षि ॥ ३॥ नृप हलवे .
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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