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________________ जैनकथारत्नकोप नाग आठमो. हीन पति मुफ कर चढियो, कोश्क पूरव पुष्कृत नडियो ॥ हवे एहगुं के हवो रतिराग, मुज मनमा वसियो वैराग॥ ५॥ ते माटें तुम पासें आवी, वात कहो तेने समजावी ॥ जिम आ जन्म लगे ढुं शील, पालुं जेहथी लहियें लील ॥ ६ ॥ श्रीपेणराय सुणी एम वात, तेड्यो कपिल जणी सादात ॥ तुझ गृहवासथी विरमी नार,, विगतनेह ऊपर श्यो प्यार ॥ ७ ॥ मूक तुं एहने जनकने, गेह, पाले शील सुनिर्मलदेह ॥ वलतुं बोले कपिल विमासी, महाराज शी मामी हांसी ॥ ॥ प्राणप्रिया ए केम मूकाय, ए विण घडी वरसां सो थाय ॥ राजन जीवननी ए मूली, प्रीति न जाये में उन्मूली॥ ए ॥प्राण कहूं तो ए न कहाय, ए विण प्राण घणुं । सीदाय ॥ स्वामी वलि वलि गुं बोलावो, प्राणप्रियाने घर वोलावो ॥ १०॥ | कहेनामा वलतुं मन मेली, ए साथे नवि करवी केली ॥ जो नहिं मेहले किमही एह, अनलशरण करशुं था देह ॥ ११ ॥ राजन कपिल नगी एम जांखे, केम माटीपणे एहने राखे ॥ मन मोती जाग्यां ने जेह, कहो किण परें संधाये तेह ॥ १२ ॥ मुज मंदिरमा रहेशे एह, पुत्रीपरें सांजल ससनेह ॥ वात सुणी विलखो थर वलियो, पण मनमां को कलक लियो ॥ १३ ॥नामा रहे राणीनी पासें, पाले शील अखम उल्लासें ॥ राम कहे त्रीजी ढाल मजार,धन्य जे राखे निज आचार॥१॥स०॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥ विमलबोध इण अवसरें, सूरीश्वर जगवंत ॥ बदु परिवारें परवस्था, नूमंगल विचरंत ॥ १ ॥ पावन करता पाउले, अवनीतल मुनिराज ॥ जे अगाध जवसिंधुना, तारण तरण जहाज ॥ २ ॥ समितियें समिता साधु जी, साचा जेहना वास ॥ दास कखो कंदर्पने, न पड्या आशापास ॥३॥ रत्नपुरीने परिसरें, देवरमण उद्यान ॥ ते मुनि आवि समोसया, श्रुतज्ञानी लगवान ॥ ४ ॥ सुणि बागमन मुनीशनु, लोकमुखें नरराज॥ मुनिवर वंदन नीलखो, लेई सवलो साज ॥ ५ ॥ विधियुं वंदी साधुनें, त्रिविधं थइ उजमाल ॥ निसुणे अमृतस्त्राविणी, मुनिदेशन सुरसाल ॥६॥ ॥ढाल चोथी॥ ॥चेतन चेतो रे चेतना ॥ ए देशी ॥ मानवनव सवलो लई, उलहो दश दृष्टांतें रे ॥ मूकी रे निश मोहनी, धर्म करो एकांतें रे ॥ १॥ नवि - -
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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