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________________ श्री शांतिनाथनो रास खंत्रीजो. १२३ ॥ दोहा ॥ ॥ यदतणी सेवा करे, कुसुमें पूजे पाय ।। राख राख स्वामी हवे, तुं श्रम माय ने ताय ॥१॥ पर्वदिने वोल्यो यदा, यद तेह नजमाल | बंधव कर जोडी कहे, राख राख अम्ह पाल ॥ २ ॥ यह कहे ते वेदुने, निस्तार निर्धार ॥ पण निश्चल था सांजलो, महारो एक विचार ॥ ३ ॥ तुम जा तां ते यावशे, पापिणी पूवें सोय ॥ कहेहो तुमने ते घj, सुनजरें साहा मुं जोय ॥ ४ ॥ ते ऊपर धरशो तदा, जो अनुराग लगार ॥ तो उलाली तुमने, नारवीश समुइ मजार ॥ ५ ॥ जो रहेशो निरपेक्ष्यी , तो तुमने त तकाल ॥ पहोंचाडीश चंपा पुरी, लहेशो सुरक रसाल ॥ ६ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ मजरो व्यो ने जालम जाटडी ॥ ए देशी ॥ कुमर कहे तस संगर्नु, फल दीढं माहाराज ॥ ए साहामुं निरखं नहिं, सो वानां करे थाज ॥ ॥१॥ हवे अम तारोजी साहिबा ॥ ए बांकणी ॥ वलग्या तुमारेजी पा य ॥ शरण ययुं एक ताहरूं, अवर नहिं को उपाय ॥ ॥२॥ खंधे चडावीने चालीयो, दरियामां यदाज ॥ वे वांधव हरख्या घj, फलीयां बांठित काज ॥ह० ॥ ३ ॥ हवे देवी निजमंदिरे, नवि दीपा दोय बंधु ॥ जाए\ झाने ते यदजी, जाय चढावीने खंध ॥ ह ॥ ४ ॥ खड्ग लेने के थइ, क्रोध नराणी जी जोर ॥ थावो वांडोजी जीवद्, एम कहे करती जी सोर ॥ ३० ॥ ५ ॥ नहिंतर एणे खहें सही, करा तुम शिरछेद ।। यद कहे रहो रंगयुं, अंश न करशो जी खेद ॥ ४० ॥ ६ ॥ जाए. न मग्या ए चित्तथी, मामी माया जीनूर ।। मुफ मुकीनं एकाकिनी, केम जादोजी दूर ॥ ॥ ७ ॥ वाहालपएं तुम किहां गयुं, एमनधि दीजें जी ह ॥ रंगरमें रम्या मंदिरे, ते विलाखोजी नेद । ह ॥७॥ चित्त चल्यां नहिं तेहनां, खेद सही मनमाहे ॥ कहे जिनरहितने घj, वाहातो जोचितप्राण ॥ ६ ॥ ॥ दिए मान पालापनी, क्रिया सर खी जी दोय ॥ चित्ताहादक प्रेमनी, गति न्यारी ने जी कोय ॥ दम् ।। १०॥ तुज सायं मुफ गोवडी, वे अंतरनी जी सार ॥ ते जाणे मन माह सं, नहिं तुज हेजगार ॥ ॥११॥याचा मलो मुज वालहा, या संगमजी सुख ॥ नहिंतर पाए नजिश ई माहगं, दोहिखं घिरइनें t ric ALL + -14154 -
SR No.010253
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1892
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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