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________________ गौतमकुलक कथासहित. 31 नवव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल अने स्वनाववंत जे. केवलज्ञान केवल दर्शनना धणी एक समयमा लोकालोकना अतीत अनागत अने वर्तमान कालना नाव सर्व उत्पाद व्यय अने ध्रुव पणे जाणे , पण कोई परनावमा रा गहषे परिणमता नथी. एटलाज माटेअक्रोधी, अमानी, अमायी.अलोनी, अरागी, अशेषी, अक्लेशी,अवेदी, अयोगी, निईही, निर्लेपी, अवर्णे, अगंधे, अरसे अने अफासे एवां विरुदधारक कहियें. वली नहाना नथी, महो टा नथी, वृत्त नथी, व्यत्र नथी, चौरस नथी, केवल ज्योतिमय स्वसत्ता ना जोगी, परजावना अनोगी, स्वनावना कर्त्ता, परजावना अकर्ता, स्वना वरमणीय, कोश्ने कांश थापे नहि, लीये नही, कोश्ने सुख फुःख करे नही, अव्याबाध सुखना धणी एवा सिह परमात्मा ते जिन सिक्षादिक पन्नर नेदें ले. जेने आठ कर्मना क्यथी पाठ गुण प्रकट थया ने. अथवो अस्त कर्मना अनावें विशेषथी एकत्रीश गुण प्रकट थया ते या प्रमाणेः झानावरणीय कर्म गये पांच गुण प्रगट थया, दर्शनावरणीय कर्म गये नव गुण प्रगट थया, वेदनीय कर्म गये बे गुण प्रगट थया,मोहनीय कर्म गये बे गुण प्रगट थया, थानखा कर्म गये चार गुण प्रगट थया, नामक में गये बे गुण प्रगट थया, गोत्रकर्म गये बे गुण थया, अंतराय कर्म गये पांच गुण थया, एम एकत्रीश गुण कहेवा // तथाचोक्तं // खीण मश्ना गावरणे 1 खीणसुयनाणावरणे 2 खीणहीनाणावरणे 3 खीणमणपऊ वनालावरणे 4 खीगकेवलनाणावरणे 5 एवं खीण चरकुदंसणावरणे / खीणनिहे 5 एवं 14 खीरासायवियणिले एवं 16 खीण दंसण मोह मिले, खीण चरित्त मोहणिजे, एवं 17 खीण नरगानए इत्यादि / एवं 22 खीण सुनणाम खीण असुनणाम, एवं 25 खीण उच्चगोत्ते, खीणनीचगोत्ते एवं 26 खीरा दाणांतराइए, 5 एवं 31 गुण जावा. वली आवश्यक नियूक्तियें बीजी रीते सिपना एकत्रीश गुण कह्या बे. पांच वर्णने अनावे पांच गुण, बे गंधने अनावे बे गुण, एवं 7 पांच रसने अनावे पांच गुण, एवं 12 आठ फरसने अनावे आठगुण, एवं 20 पांच संस्थानने अनावे पांच गुण, एवं २५त्रण वेदनें अनावे त्रण गुण, एवं 27 असंगीपणुं 1 अशरीरीपणुं 2 अरूपीपषु एवं 3 एवं 31 गुण थया. इत्या दिक सिम स्वरूप मुखथकी कोण कही शके ? यद्यपि केवलज्ञानी केवल
SR No.010251
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size46 MB
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