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________________ ७६ जैनकथा रत्नकोप नाग त्रीजो. धिक करारो हो, याश्रम मोह बे, हजीय न मूके केड | तो हवे निज ब ल हो, नुज बल फोरवी, अरि नाखुं नथेड ॥ वै० ॥ ए ॥ इलि परें चिन्ती हो, जयनंना नली, वजडावे गुन वार ॥ कटक सहायी हो, सघजूं सज क रे, रि जीप अधिकार ॥ वै० ॥ १० ॥ सामंत सखरा हो, साथे वड वडा, पुत्र कलत्र परिवार ॥ हय गय पायक हो, रथ चतुरंगशुं, ते सुएजो विस्तार ॥ वै० ॥ ११ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जय जय शब्द सहु नणे, मांगलिक मुख चार ॥ अरिहंत सिद्ध ने साधु धर्म, ए चारे सुखकार ॥ १ ॥ शीख दिये हवे जगगुरु, सुण विवे कवड वीर ॥ समय मात्र पण मत धरे, प्रमादसेंती शीर ॥ २ ॥ माता शीखें चालजे, वे नारी अनुकूल ॥ निवें सन्नाह तुं पहेरजे, यरि होशे अकतूल ॥ ३ ॥ || TIA HIJA || ॥ नविक कमल प्रतिबोधवा, साधु तणे परिवार || ए देशी || विनय विवेक विचार, करजेतुं महेलाए ॥ वेशास न करे केहनो, ए बे माहरी यो रे || सु सु शुनमति, तुं बे चतुर सुजाणो रे तो पण ग्राखियें, रिपु जिपरो टालो रे ॥ सु० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ जन्म की तुं जाएग बेरे, पूरो पात्र सुपात्र || तो पण उपदेश जाएगीने रे, थापीजें तुफ गात्रो रे ॥ सु० ॥ २ ॥ तु वैरी तीखो बे रे, तुं शीलो बे वीर मां बल रे, पावक तुं नीरो रे ॥ सु० ॥ ३ ॥ शांत रसीलो तुंरे, ते तामस धीर ॥ तुं सुरतरु बाया अबे रे, यातपनो नारो रे || सुप ॥ ४ ॥ निज गुण ने मत मूकजे रे, रहेजे माता पास || अमिय कचोलां एहनां रे, लोचन बे गुण रासो रे ॥ सु० ॥ ५ ॥ जव वैराग्य ए ताहरो रे, सुत महोटो शिरदार ॥ मुख खागें राखे सही रे, जीपशे रिपु परिवारो रें ॥ सु० ॥ ६ ॥ संवेग निर्वेद लघु सुता रें, जय करशे तुक जोर ॥ रण र सिया रिपु जीपशे रे, यातमनो बल फोरो रे ॥ सु० ॥ ७ ॥ समकित दृष्टि जे मंत्री रे, धरजे फोजां मुख्य ॥ नद्यम सफलो ए दुशे रे, जाशे सघलां दुःखो रे ॥ सु ॥ ८ ॥ राम दम तप जप उमरा रे, वड वडा वीर विख्या ॥ दरजेतुं एहने रे, दुशमनने करि घातो रे ॥ सु० ॥ ए ॥ ज्ञान त
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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