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________________ श्रीमोदविवेकनो रास. ७१ १६ तात दून जिसे, कथन न माने कोय ॥ अशन वसन आपे नहिं, पुत्र वधू वश होय ॥४॥ अल्प नरमने कारणे, खेल करे अति घोर ॥ मन सं तोष धरे नहिं, तृष्णा वाधी जोर ॥५॥ नगिनी ब्रात तणे घरे, जन्म लगे रीसाय ॥ नाइ मांहोमांहि वली, परणी जूया थाय ॥ ६॥ सगपण संपन को धरे,सदु स्वारथने थाय॥ परमारथ प्री नहिं,कलियुग व्याप्योाय॥७॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥धर्म हैये धरो ॥ए देशी ॥ रस कसमां कलि व्यापियो रे, दिन दिन एहवो थाय ॥ मेह घणा वरसे नहिं रे, वाजे अधिका वायो रे॥ कलि कौतु क करे ॥ समयतणो वती जोरो रे, अल्प धर्म दून ॥ व्याप्यो पाप अघो रो रे ॥ कलि ॥ १॥ ए आंकणी ॥ पत्नीगुं प्रीत नहिं धरे रे, परनारी लो जाय ॥ शीख जली घरनी दीये रे, ते मन नावे दायो रे ॥क॥२॥ कपट करावे मित्रगुं रे,जननी जनकगुंजूऊ॥ कुबुदि शिखावे पापनी रे,आववान दिये जो रे ॥क॥३॥ स्वारथ लगे मैत्री करे रे,नियम संकट लगि जोय ॥ कष्ट पड्यां समकित तजे रे, एहवा धीरज होयो रे ॥ क० ॥ ४ ॥ थोडी शुन संपत्ति दुवे रे, कश्ये विणसी जाय ॥ जो जीवे तो निश्चे दुवे रे, यो वन धर्मी न थायो रे ॥क ॥ ५॥ दंन विना धर्म नवि करें रे, क्रोध स हित तप तुन्न ॥ मान धरी श्रुतने नणी रे, धन मेले नहिं सुबो रे ॥क०॥ ६ ॥ व्यापारी चोरी करे रे, कुलवंत विट सम थाय ॥ कुल नारी गणिका परें रे, हसन वसन मन दायो रे ॥ क० ॥ ७ ॥ मुख मीठी वातां करे रे, कपट हैयामें राख ॥ कर्षणी अति वारंन करे रे, सामी नावे शाखो रे ॥ क० ॥ ॥ उत्तम फल थोडां दुवे रे, खारां कडुआलाख ॥ अल्प हीर गायां दुवे रे, थोडी संतत शाखो रे ॥ क० ॥ ॥ इम कलिपावक बहु करे रे, सुरुति दृधनो शोष ॥ कुमारपाल नृप अवतस्यो रे, करवा देधने तोषो रे ॥क० ॥ १७ ॥ नपदेशे हेमसरिने रे, दीपायो जिनधर्म ॥ उत्त म आचरणा करी रे, दूर कियां पाप कर्मो रे॥ क०॥ ११॥ अष्टादश देशा विषे रे, मार इसी मुख वाण ॥ कोइन नांखे नर कदें रे, एवी जेहनी था गो रे ॥ क० ॥ १२ ॥ चरण पोषण नबला करे रे, दीन हीन नमार ॥ नाव नक्ति धर्म रागियो रे, कीयां चैत्य अपारो रे ॥ क०॥ १३ ॥ कलियुग नुं मुख जालियुं रे, चौलक रीफ नरेश ॥ सात व्यसन नट कलितां रे,
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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