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________________ श्रीमोदविवेकनो रास. ५३ लोय, नीकी नटवी नाचती जोय ॥रा०॥४॥ निचे व्यवहार लोचन दोय, तिण करी जोतां आनंद होय ॥ रा० ॥ एह रसायण इणहीज ता म, नहिं को दीसे बीजे गाम ॥ रा० ॥ ५॥ सुणवा वा सुणियें जेह, ग्रहण धारण उह कहीये तेह ॥रा ॥ इणिपरें बाते ही गुणसार,पहिया मोतिना तिणे हार ॥रा० ॥ ६॥ आ गाथा माहेला बागुणनां नाम कहे जे १ गर्व न होय, २ निंदा न होय, ३ कटुकनापी न होय, ४ अ प्रिय न होय, ५ बोलवामां क्रोध न होय, ६ काव्य शरीर लक्षण चेष्टावि षये मौनी होय, ७ पूर्व अवगुण न कहे, G स्वात्मा न प्रशंसे ॥ इति ॥ ढाल पूर्वली ॥ सूरितणा गुण बत्रीश होय, आयुध धारे सबलां जोय ॥ रा०॥ सुविचार बालपणानो मित्र, तिणसुं पहिलो राखे चित्त ॥ राम् ॥ ७ ॥ आगाथामां कहेली सूरिना बत्रीश गुणनां नाम कहे ले १ स्वरूपा धिक, २ तेजस्वी, ३ जुगप्रधान, ४ आगम जाण, ५ मधुरवाक्य, ६ गं नीर, ७ बुद्धिवंत, जनपदेश देवाने तत्पर, ए परगुणनापी, १० अवगुण न कहे, ११ सौम्य, १२ शिष्यसंग्रह, १३ अवग्रहवंत विकथात्यागी, १४ चंचलता, रहित उपशांत हृदय, १५ दमा सहित, अहंकार रहित, १६ कपट रहित, १७ निर्लोनी, १७ तपस्या करे, १ए संयम पाले, २० सत्य बोले, २१ अदत्तत्यागी, २२ खुद परिणामी, २३ परिग्रह रहित, २४ व्र ह्मचर्य पाले, अने बार नावना नावे, ए बत्रीश गुण पूर्व ढाल ॥ तत्व रूची पटराणी सार, मानुं लक्ष्मीनो अवतार ॥ रा० ॥ नव वैराग्य वडो ने पूत,न्यायें राजनो राखे सूत ॥रा० ॥ ७ ॥ संवेग निर्वेद पुत्र सुजाण, तेज प्रताप घणो ज्युं जाण ॥रा० ॥ कुश्मन दूर करे पायमाल, जोरा वर जोधा वड नाल ॥ रा० ॥ ॥ ए ॥ पुत्री चारे चतुरां दीत, करुणा मैत्री मुदता मीठ ॥ रा० ॥ चोथी उपेदा नामा सार, सूरि गुणें करीने सिरदार ॥ रा० ॥ १० ॥ समकित मंत्री ने जसु पास, राजानो पूरण विश्वास ॥ राम् ॥ आर्जव मार्दव ने संतोष, शम रस सामंत नहिं को दोष ॥ रा०॥ ११॥ सात तत्त्व ते साते अंग, राज्यतणा राजे अति चंग ॥ रा० ॥ दानादिक चारे धर्म नेद, चतुरंगसेना नहिं को खेद ॥ रा० ॥ १२ ॥ विमल बोध कोटवाल प्रधान, परमागम नंमार निधान ॥रा ॥ दायोपशम समकित नाव विलास, दाणी दाण लिये नन्नास
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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