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________________ ४ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. कुःख पाम्यो नानो थयो, पर हथ दून जोय ॥ हलाहल विष तिल समुं, कुःखदायी क्युं न होय ॥ म०॥ ७॥ कबश्क फिरतां जायसी, प्रवचन पु रमां वास ॥ तो हाथे थावे नहिं, जिम सिंह गिरिमां निवास ॥म ॥॥ राजनीति मांहे कयुं, वैरी निज वश राख ॥ परवाणी कानें सुणी, दैत्य स मोवड नाख ॥ म०॥ए॥ खरी खबर लीधा विना, साल समान ए था य ॥ खबर जणी चर मूकियें, ए मुफ आवे दाय ॥ म० ॥ १० ॥ मित्र कहे वारु थडे, साहिब एह विचार ॥ तुरत तेडाव्या तिणे कणे, आखे स कल प्रकार ॥ म०॥११॥ पाखंमादिक दंन वली, सखरा सेवक जेह ॥ शीख कहे नृप तेहने, काम करो ससनेह ॥ म० ॥१२॥ पुत्र सहित निट त्ति वधू, किहां नाठी किण नाम ॥ जग सघलो ढूंढी करी, खबर करो अ निराम ॥ म० ॥ १३ ॥ स्वामी वचन शीशे धरी, सेवक चाव्या ताम ॥ शू रवीर साहसिकधरु, स्वामीतां करे काम ॥ म॥१४॥ गाम गाम पुर ते फरे, वन वन तरु तरु तेह॥ वानरनी परें जोवता, स्वामी धर्म सस्नेह ॥ म० ॥१५॥ यत्न करी जूवे घj, पण को न कहे वात ॥ पग पग पूज्या अति घणा, न पडी गुरू तिल मात ॥ म०॥ १६ ॥ फरतां दूर देशांतरें, पुण्यरंगपाटण जाय ॥ वात सकल तिहां किण लही, पण पुरमा न ज वाय ॥ म० ॥१७॥ बाना बाहार ब्रूपी रह्या, को तरुनो ले संग ॥ कोट वाल तिहां नीसयो, चोकी करतो चंग ॥ म० ॥१७॥नाग्य जोग यावी जुडी, दूषणा ऊपर चोट ॥ सिदि दुवे क्युं तेहने, जसु दिलमांहे खोट ॥ म० ॥१॥ कोटवाल सम कालिया, काठा बांध्या तेह ॥ समकित नटने वश कस्या, ताडन तरजन देह ॥ म० ॥ २०॥ मिथ्यामती पाखंम वली, दंन प्रमाद विशेष ॥ समकित शूरें कूटिया, मोहता दास देख ॥म ॥ २१॥ विवेकतणी तिण शुधि लर, ताडन पण लही तेथ ॥ हर्ष विषा द बेदु लह्या, पुण्यरंगपाटण जेथ ॥ म० ॥ २२ ॥ ॥दोहा॥ ॥ बाना नाग तिहांथकी, रही न शक्या तिहां तेह ॥ जिम दावानल देखीने, मृग नासे लेइ देह ॥१॥ मोह नणी यावी मल्या, प्रणम्या स्वामी पाय ॥ विलखाणा ते देखीने, मोह वदे चित्त लाय ॥२॥ तुमचो मुख था खेय ने, जागा याव्या बाज॥में आगेंही जाणियो,तुमथी नदुवे काज ॥३॥
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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