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________________ ४२ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. ॥ विद्या गढ कीधो रे, निज वंबित सीधो रे, जाणे जल ज्युं पोधो, वड ए सोह बेरे ॥ २ ॥ हाथी जला घोडा रें, वली मानव जोडा रे, बहु रा रख्या बे होडा, होडी तुम तली रे | सघलो जग जीत्यो रे, दूबे वदीतो रे, वैरी नीतो बीतो, सदु नए रे ॥ ३ ॥ मोहराजा जोरें रे, खाज स खरो तोरे रे, कहे हरि खावे कोरें, एहने रे ॥ तपसी तप चूके रे, मोह पासें के रे, धर्म सघलो ते खूंटे, जोरे तेहने रे ॥ ४ ॥ कुलवंत कहीजें रे, आचारे बीजें रे, मोहें करी जींजे, रीके रागमां रे || देव दानव नागा रे, इल या जागा रे, पूठा वली नावे सरगा, मागमें रे ॥ ५ ॥ वेद मंत्रना पाठारे, तो पण जाये नाठा रे, इसा मोहना काठा जाठा, कुण सहे रे ॥ पशुपंखी जीत्या रे, जस खाटे वदीता रे, बहु काल व्यतीता, अंत न को लहे रे ॥ ६ ॥ तुम सेवक नांख्या रे, तो पण मोह राख्या रे, कोइ जोर न चाले पाले, को नहिं रे ॥ अतुली बज दीसे रे, पाप विशवा वीशे रे, सघलानां मन हींसे, वे सही रे ॥ ७ ॥ तमचो मुख जोइ रे, हरखे सब कोइ रे, पर पूछें न हो, हमणां वे जिस्या रे || मोह राय लेखे रे, जग सघलो पेखे रे, जाणो विशेषें, हमलां ए दशा रे ॥ ८ ॥ ❤ ॥ दोहा ॥ ॥ वली विवेक वांचे घणा, मोहतणा अवदात || जगगुरु तुं सब जा एग े, तो पण सुजो वात ॥ १ ॥ जीव हणावे लोकपें, फूट शीखावे जोर ॥ वाट पडावे धन हरे, परदारक प्रति घोर ॥ २ ॥ बज बल साधे प्रति घणा, जोडे धननी राश || लोलुप लोनी लंपटी, व्यसन न मूके पा स ॥ ३ ॥ शीखावे सघला भए।, पापती बहु वात ॥ संतति सखरी हो यसी, गरवतो करो घात ॥ ४ ॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ ॥ वेगवती तिहां बांजणी ॥ ए देशी || मोहतणो महिमा सुणी, नवि जन श्रातम जावो रे || उदय अधिक यावे बते, वाधे मोहनो दावो रे ॥ मो० ॥ १ ॥ पूजावे पीपलनणी, देवरावे दवदारो रे || पावस पात्रने पो पियें, ए ए मोह विकारो रे || मो० ॥ २ ॥ लाख पीपी फल जेहनां, कृमि कीटको हो रे || पीपल पीतरा उद्धरे, ए ए मोह हो रे || मो० ॥ ३ ॥ पूजावे निर्जीवने, नागतणे याकारो रे ॥ सापती हिंसा करे, ए ए मोह
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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