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________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. ताना धणी ऊपर रागिणी थशे. पड़ी तेना पतियें तेमज कपु. तेथी तेनां कामण उतरी गयां, धने पोताना धणी उपर रागी थ. हवे एनो उपनय कहे . जेम ए स्त्री कामणने योगें ते पारिव्राजकने मूकी अन्य कोश्नी उपर अनिलाषा न करे, तेम जे सुश्रावक होय ते प ण निःकेवल श्रीजिनधर्मनावित बतो केवल श्रीजिनवर तथा सुसाधुनी नपर प्रेम राखे, परंतु अन्य कोश्नी ऊपर नक्तिराग राखे नहीं. ए त्रीजुं नक्तिराग नामें समकेतनुं नूषण कडुं. हवे चोधुं स्थिरता नामें नूषण कहे . (थिरया के०) स्थिरता नि चलता तेने ( दसम्मत्तं के०) दृढ समकेत कहीयें, जे माटे दृढसम्य क्ववान पुरुषने जो देव, दानव,चलाववा मगाववा आवे, तो पण ते च से नहीं समकेतथकी खसे नहीं. अन्यदर्शननी अत्यंत पूजा प्रनावना थ ती देखे तो पण तेनो लेशमात्र रोमोत्कंप न थाय. समकेत विना बीजा सर्व अज्ञानमार्ग , एम माने, वायराथी जेम पूणी उडी जाय जे तेम ए अज्ञानी मिथ्यादृष्टियो संसारचक्रने विषे उडता फरशे एवं माने ॥ या तं ॥ चत्तारि पुरिस जाया परमत्ता तं जहा ॥ एगेपिय धम्मे नो दहृधम्मे. द हृधम्मे णाम एगे नोपिय धम्मे एगे पियधम्मेवि दधम्मे वि. एगे पियधम्मे नो दधम्मे ॥ इति ठाणांगसूत्रे॥ ___ हवे ए स्थिरता नूपण ऊपर सुलसानो दृष्टांत कहीयें बैये, मगधदेशे राजगृहि नगरें प्रसेनजितराजा राज्य करे , तेनो नाग एवे नामें सारथिनी प्रियात्मा सुलसानामें स्त्री हती ते नागसारथिने पुत्र नथी तेनो कुःख ध रतो शोकातुर थको रहे. तेने सुलसा कहे के हे स्वामी! तमें कुःख म करो. जे कर्ममा लरव्युं हशे, ते थाशे, ते अन्यथा थनार नथी. एम करतां पण जो आपने स्थिरता न रहे, तो अन्यस्त्रीनुं पाणिग्रहण करो, के जेम तेथकी पुत्रप्राप्ति थाय, तो पण रूडं बे. तेने नागें कयुं अन्यस्त्रीनुं पाणि ग्रहण तो ढुं सर्वथा नहींज करुं परंतु अन्यदेव जे खेत्रपालादिक ने तेम नी मानता पूजा करिगुं. जे थकी आपणने पुत्र प्राप्ति थाशे. सुललायें का एक श्रीवीतरागदेवने पूजतां जे थान ते नलें थाउ, प ए सर्वथा अन्यदेवर्नु अाराधन तो ढुं मन, वचन अने काया ए त्रणे योगें करुंज नहीं. हवे सुलसा एकाय मनें त्रिकाल देवपूजा करे, विशेष
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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