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________________ ១០ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. ने विषे चाल. एम कही अंबिकाजी आगल चाव्यां अने तेमनी पाल र नशाह चाल्यो जाय अनुक्रमें कंचनबलानक तीर्थ गया तिहां अढार प्रतिमा रत्नमय अढार हेममय, अढार वजमय अने अढार रौप्यमय एम बहोत्तेर प्रतिमा दीठी, तेवारें हर्ष उपनो तेथी नूख तृषा सर्व वीसरी गइ. हवे शेठने अंबिकायें कडं तहारुं मन माने ते एक प्रतिमा ले. शेठे रत्न मयबिंब लीधुं अंबिकायें कह्यु बागल काल विषम पावशे म्लेडराजा था शे तेवारें ए प्रतिमा रही शकशे नहीं तेमाटे वजशिलामय बिंबले. शेठे पण ते वचन सत्य जाणीने वजशिलामय बिंब लीधुं अने देवीने पूब्यु ए बिंब वजमय घणुं नारी ने माटे केवीरीतें लइ जानं ? देवीयें कह्यु काचे सूत्रे वींटी सूत्रनो बेहडो हाथमां कालीचाल्यो जा, पण पा वली जोश मां. शेठ एमज लश् चाल्यो घणी नूमि उलंघी पण हाथमां लगार मात्र नार जणायो नहीं तेथी संघवी जाण्युं प्रतिमा आवे बे के नथी आवती ? ए वी शंका आणी पाबंवली जोयुं तो बिंब तिहांज स्थिर थरह्यं घणा प्र कारें उद्यम कस्यो पण बिलकुल हाले नहीं, तेवारें तिहांज प्रासादनी रच ना करी; श्रीनेमिनाथजीनी प्रतिमानी पूजा करीने पनी पार| कस्युं, सर्व संघे पण पूजा करी. एम तिहां घणा दिवस रही मनना मनोरथ पूर्ण करी पली संघवी श्रीशेजेजयनी यात्रा करवा चाल्या. अनुक्रमें श्रीशत्रुजयें ाव्या. यात्रा कीधी साधर्मिकवात्सल्य प्रमुख कार्य कयां. एवी रीतें घणा तीर्थोनी यात्रा करी देमकुशलें काश्मीरदेशे नवफूल पाटणे पोताने घरे आव्या. राजायें नगर प्रवेशादिक महोत्सव कस्या. पनी ते शेठ, नवानवां जिनशासननां कार्य करी जिनशासननो प्रानाविक थयो. एम यात्रादिक कार्य करी पण श्रीजिनशासननो प्रानाविक थाय, ए रत्न संघवीने दृष्टांतें जनमनोरमण कार्य जे करे, ते प्रानाविक थाय ॥ इति तपागबालंकार नट्टारक श्रीहीरविजयसूरिश्वर क्रमात् पट्टप्रनाकर श्रीविजय देवसूरीश्वर विजयमानराज्ये महोपाध्याय श्रीशकलचंगणि शि ष्योपाध्याय श्रीशांतिचंगणिशिष्योपाध्याय श्रीरत्नचंगणिविरचिते श्रीस म्यक्त्वरत्नप्रकाशनामनि सम्यक्त्वसप्ततिकाबालावबोधे अष्टप्रानाविकस्वरूप निरूपण नामा षष्ठोधिकारः समाप्तः ॥ ६ ॥
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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