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________________ २४६ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. ध्यायें बेकia ब्राह्मनी बेदु पंक्तियें फेरवी तेथी विप्रोनां मस्तको द डानी पेठें खागले जइ पड्यां. ते देखी राजा प्रमुख सर्वलोक त्रास पाम्या; गाममा हाहाकार थ रह्यो राजा पोते सिंहासनथी कठीने उपाध्यायने प लागो ने कह्युं के स्वामी, महारी नूल थइ ते माफ करो. " उपाध्यायें कहां, वली पण कहे के विप्रने पर्गे लागो. राजा बोल्यो महाराज महारो एकवार थयेलो अपराध खमो उपाध्यायें कयुं तहारो अपराध माफ करूं बुं. पण हवे तुं विप्रनी वातमां पडीश नहीं, राजायें क ह्युं तमे दयालु बो माटे विप्रोने जीवितदान आपो एवामां यकाशवाणी थ जे सर्व विप्रो दीक्षा लीये, तो जीवता रहे ते वात शेष विप्रोयें अंगीकार करी तैवारें उपाध्यायें तत्काल ते सर्व विप्रोनां मस्तक गला ऊपर मूकाव्यां ते मूकतावेंतज पोताने स्थानकें यथातथ्य बेसी गया ब्राह्मण सघला जीव ता रह्या. ने दीक्षा लीधी, राजायें पण श्रावकधर्म अंगिकार कस्यो. ब्राह्मणोने दीक्षा दे श्रीजिनशासनना प्राजाविक महें उपाध्याय नृगु काव्या तहां पोताना गुरुने वांदी बेवा. यार्यखपटाचा श्रीमुनिसु व्रत स्वामीना चैत्यनी प्रतिष्ठा करी श्रीमहें उपाध्यायने प्राचार्य पढ़ें स्था पी गष्ठानुज्ञा दीधी. पोतें उत्तमार्थ साधी स्वर्गेपहोता तेमने पाटें महेंाचार्य पण महाप्रजाविक थया. यामृवृनां फलपण याम्रज होय ए दृष्टांतें जा rg. ए विद्यामंत्रप्रानाविक ऊपर यार्य श्रीखपटाचार्यनुं चरित्र कयुं ॥ हवे सातमा सिमाना विक तथा खातमा कविप्रानाविकनुं स्वरूप कहे बे. ॥ संघाइ कऊसाहग, चूमंजन जोग सिद्ध सिद्धे ॥ नूब सहगाथी, जिए सासरा जाउ सुकई ॥ ३६ ॥ यर्थः - ( संघाइ के० ) संघ ते सा धु, साध्वी, श्रावक, खने श्राविका लक्षण जाणवो तथा यदि शब्द थकी जिनगृह, जिनबिंब, उपाश्रय, ज्ञानजंमार प्रमुख ( कऊ के० ) कार्य लेवां कार्यना ( साग के ० ) साधक जे ( चूांजनजोग के० ) चूर्ण तथा अं जन ने योग तेणें करीने जे ( सिद्ध के० ) सि६ थयो तेने ( सिद्धे के० ) सिद्ध कहीयें. एटले एटला वानां जेनां करेला साचा थाय पण खो टा नयाय विघटे नहीं तेने सिद्ध कहीयें. हवे चूर्ण ते गुं कहीयें, तो के जे की सुवर्णसिद्धि, रजत सिद्धि याय एवा चूर्ण होय वे जेम कालिकाचार्ये सोनानो इटवाह करी शाकराजानुं कटक सर्व संतोषयुं, ते चूर्ण जाणवुं.
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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