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________________ २२० जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. दर्शनीनो परिचय टालवो जेम धंतुरानी संगतथी तैल विणसी जाय तेम मि थ्यात्वनी संगतथी समकेतनो विनाश थाय. तथा जेम मोघरानी संगतथी तै लमां सुगंध थाय, तेम सुगुरु तथा साधर्मीनी संगतथी समकेत सुगंधी थाय, इति तपागहालंकारश्रीशांतिचंगणिशिष्यश्रीरत्नचंगणिविरचितश्रीस म्यक्तत्वरत्नप्रकाशनामनि सम्यक्तत्वसप्ततिकाप्रकरणबालावबोधे शंकादिपंच दूषणस्वरूपनिरूपणनामा पंचमोऽधिकारः ॥ ५ ॥ हवे बहुं आठ प्रानाविकोनुं हार कहे जे. ॥ सम्मंदसण जुत्तो, स सई सत्ति पनावगो होई ॥ सो पुण व विसि, निदिको सुत्त निईए ॥ ३१॥ अर्थः-जे (सम्मंदसणजुत्तो के०) निरति चार पणे सम्यक्त दर्शने करीने युक्त होय (स के०) ते पुरुष (सईस त्ति के०) बतिशक्तियें (प्पनावगोहोई के) प्रानाविक होय श्रीजिनशा सननी दीप्ति करे, (सोपुण के० ) ते पुरुष वली (इब के०) इहां श्री जिनागमप्रणीतसूत्रने विपे झानादिक गुणें करी ( विसिको के ) विशि ष्ट प्रधान वचनादिक लब्धिनो धणी एवो (निदिको के०) कह्यो ले ते जेम याकाशने विषे सूर्य, चं अने घरने विपे जेम दीपक शोने दे, अजवा यूँ करे बे. तेम श्रीजिनशासनरूप आकाश तथा घर तेने विषे सूर्य, चं तथा दीपक समान ते पुरुष जाणवो. (सुत्तनिईए के) सूत्रनी नीतियें करी जाणवो, सूत्र जे आगल पावयणी प्रमुख कहेशे, ते सूत्रने न्यायें करो ॥३१॥ हवे ते प्रानाविक आठ नेदें , ते आठ नेद कहे :॥पावयणी धम्मकही, वाई निमिति तवस्सीय ॥ विद्या सिझो य कई, अव पनावगा नणिया ॥ ३२ ॥ अर्थः-एक (पावयणी के०) प्राव चनिक, बीजो (धम्मकही के०) धर्म कथिक, त्रीजो (वाई के० ) वादी, चोथो (निमित्ति के० ) नैमित्तिक, पांचमो ( तवस्ती के०) तपस्वी, (य के०) वली बहो ( विद्या के०) विद्यावान्, सातमो (सिको के) सिम (य के०) अने बातमो (कई के०) कवि ए (अव के०) बाउज (प नावगा के०) प्रानाविक श्रीवीतरागें (नणिया के० ) कह्या २ ॥ ३ ॥ हवे प्रकरणकर्ता ए आनुं स्वरूप कहे :॥ कालुच्चिय सुत्तधरो, पावयणी तिबवाहगो सूरी ॥ पडिबोहिय नवज
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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