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________________ २५४ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. सा करवाथी जो ते जीवने स्वर्गप्राप्ति थती होय तो माता, पिता, पुत्र, ना इयोयें करीने यज्ञ केम करता नथी? - ए श्लोक सांजलीने राजायें पूज्युं के,त्यारे गुं यज्ञ करवाथी स्वर्गनी प्रा ति नहिं थाय? त्यारे कवि बोल्यो. ॥यपं हित्वा पशून हत्वा,रुत्वा रुधिरकर्दमम् ॥ यद्येवं गम्यते स्वर्गे. नर के केन गम्यते ॥ ६ ॥ अर्थः-यझनो स्तंन तोडी नाखवाथी तथा पशु उन। हत्या करवाथी; तथा रुधिरनो कीचड करवाथी जो स्वर्गनी प्राप्ति थ ती होय, तो पड़ी नरकमां कोण जाय? वली राजायें पूज्युं के, यज्ञ केवी रीतनो करवो? ते कही संनलावो. त्यारे कवि बाल्यो. ॥ सत्यं यूपं तपोह्यग्निः, प्राणास्तु समिधो मम ॥ अहिंसामादतिं द द्या, देष यज्ञः सनातनः ॥७॥ अर्थः-सत्यरूप यस्तंन तथा तपश्चर्या रूप अनि अने पोतानां प्राणरूप समिध,अहिंसारूप आहुति,एवी रीतनो जे यज्ञ,तेज नाश रहित निर्दोष यज्ञ जाणवो. अने यज्ञ पण तेनेज कहेवो. अने हिंसा कारक जे यज्ञ, ते निंदवा योग्य ले. त्यारे राजायें पूब्युं के, ए वात बीजाने केम गमती नथी? तेनो उत्तर कवि बोल्या. ॥ हिंसा त्याज्या नरकपदवी सत्यमानाषणीयं, स्तेयं देयं सुरतविरतिः सर्वसंगानिवृत्तिः ॥ जैनोधर्मो यदि न रुचते पापपंकावृतेन्यः, सर्पिष्टं कि मलमियता यत् प्रमेही न जुक्ते ॥ ॥ अर्थः-नरकना मार्गरूप जे हिंसा तेनो त्याग करवो अने सत्य नाषण करवू, चोरी न करवी, विषय सुरखनो त्याग करवो, अने सर्व परिग्रहनो त्याग करवो एवा उपदेशरूप लहरों क री युक्त नत्तम जैनधर्म ने. ते बतां पापी लोकोने ते जैनधर्म जो रुचतो न थी तो त्यां दृष्टांत कहे जे के, जेम प्रमेह रोग ग्रस्त मनुष्यने घृत अरुचि कारक थाय दे, तो ते घृत काहिं उष्ट कहेवाय डे? तेनी पढ़ें याहिं पण जा ग. ए वात सांजली राजायें बकरो मूकाव्यो, धनपालने घj सन्मान दीg, पनी राजा घरे आव्यो. हवे एकदा प्रस्तावें राजा सरस्वतीकंवानरण एवे नामें शिवना प्रासा दनेविषे धनपालने साथें तेडी गयो, तिहां राजायें पूब्यु के, हे धनपाल ! आजना समयमां कोईमां एवं ज्ञान , के जेथकी चमत्कार उपजे ? ध नपालें कह्यु के, एवं सम्यक्झान श्रीजिनशासनने विषे , अन्यत्र तो मि
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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