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________________ २४ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. हार देखतांज जातिस्मरण उपy. तेथी पूर्वनव स्वरूप दीतुं, ने जेहवु म दनदत्ते कडुं हतुं, तेवुज राजा आगल तेणें स्वरूप कडुं. ___ हवे राजा चिंतववा लाग्यो के, जे प्रथम धर्मनो विवाद थयो, ते पुत्र नुं वृत्तांत सांजलवाथी महारो सर्व संदेह पोतानी मेलें बेदाइ गयो. माटें श्रा त्रणे जगतमां एक श्रीअरिहंतनो धर्मज नव्यजीवोने संसारनी बीकने बेदनारो तथा स्वर्ग अने मोदना सुखनो दातार डे, एवो निश्चय कस्यो. एवा समयमां वनपालकें आवीने राजाने वधामणी आपी के, हे स्वामी ! आजे नगर बाहिर पुष्पावतंसक नामा वननेविषे घणा शिष्यना परिवारें परवस्या, चार ज्ञानना धारक, सुरासुरें सेवित एवा गणधर नामें गुरु स मवसस्या , एवं सांजलीने जेम मेघनो शब्द सांजली मोर हर्ष पामे, तेम राजा हर्ष पाम्यो थको वनपालकने वधामणी आपी संतोपित करी पोतें हस्ती नपर वेशी पुत्र, मित्रादिकेंसहित तेमज चतुरंगिणी सेना संघातेंला आचार्यने वांदवा गयो, आचार्य प्रति पंचालिगम साचवी वांदीने योग्य स्थानकें वेसी धर्मदेशना सांजलवा लाग्यो. तिहां गुरु कहेवा लाग्या के,हे जव्यजीवो! सर्वधर्मनुं मूल धार एटले बारणांरूप, धर्मनो आधार, धर्म नुं नाजन, धर्मनो निधान, ते समकितज डे, तिहां जे देवने विपे देवनी बुद्धि, अने गुरुने विपे गुरुनी बुद्धि तथा धर्मनेविपे धर्मनी बुदि, ते सम्य क्व जाणवू. अने जे तेथी विपरीत ते मिथ्यात्व जाणवू. ते माटें सम्यक्त्व विना मोदप्राप्ति नहिं, अने मिथ्यात्व विना संसारनी वृद्धि नहीं. तिहां देव ते रागपरहित श्रीजिनेश्वर जाणवा, तथा जे पंचमहाव्रत धारी साधु ते गुरु जाणवा, अने श्री जगवंतनो कहेलो दयामूल धर्म ते धर्म जाणवो, एत्रण तत्त्वना आराधनरूप समकेत पाले बते, ते पुरु पने नरक अने तिर्यचनी गति केवारे पण प्राप्त न थाय, तथा देवगतिनां सुख, मनुष्यगतिनां सुख अने मोदनां सुरख वश थाय, जे प्राणी एक अंतर्मुहूर्त्तमात्र पण समकेतने फरसे, ते निश्चेथी अईपुगत परावर्तन मांहे सिदि पामे. एवो धर्म,गुरुपासेंथी सांजलीने राजा पोताना पुत्रसहित समकेतपूर्वक श्रावकनोधर्म अंगीकारकरी हर्षधरतो पोताने घेर आव्यो. एकदा देवलोकमां इंश्महाराज नरवाराजानी प्रशंसा करी जे ए रा जा समकेतमां एवो दृढ थयेलो ,के देवताथी पण चलाव्यो चले नहिं,
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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