SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. थी मांझीने यावत् दृष्टिथी वाद पर्यंत जाणवू. आचारांगादिक अगीयार अंग अने बारमो दृष्टि वाद, ए सर्व श्रुत जाणवू ॥ १७ ॥ ___५-६ ( धम्मो के ) धर्म ते (चरित्तधम्मो के० ) चारित्रधर्म जाण वो बहो ( तस्स के ) ते चारित्रधर्मनो (थाहारो के०) आधार ते (सा दुवग्गत्ति के० ) साधुनो वर्ग के इति एटले एम जाणवो. जे कारण माटें जेवारें कोई पण साधु न पामीयें, तेवारें चारित्रधर्म पण न पामी, अने जेवारें साधु पामीयें, तेवारें चारित्रधर्म पण पामीयें ॥ यतः॥ पुरिमंतिम य, तरेसु तिबस्स नलि वुबे ॥ मधिवएसु सत्तसु, इतिय कालं तु वुडे J॥ १॥ चननागं चननागो, तिन्निय चउनाग पलिय चननागो ॥ तिने व य चननागो, चनबनागोय चननागो ॥ २ ॥ इति प्रवचनसारोबारे ॥ __७ (आयरिय के० ) आचार्य ते जे ज्ञानाचारादिक पंचाचार पालवा ने विषे तत्पर होय, बत्रीश गुणें करी बिराजमान सुविहित शुक्ष्प्ररूपक, सारणा, वारणा चोयणा पडिचोयणाने विषे तत्पर सांप्रत विजयमान,त पागबाधिराज श्रीविजयसेनसूरि पट्टालंकारहार हीर श्रीविजयदेवसूरीश्वर प्रमुख जागवा ॥ यतः॥ सम्मत्त नाण चरणा, पत्तेयं अध्यनेजा ॥ बारस्स ने य तवो, सूरि गुणा कुँति बत्तीसा ॥१॥ अथवा ॥ आचारा य अठ,तहचेव दस विहो न ठियकप्पो ॥ बारस तव बावस्सग, सरिगुणा हुँति बत्तिसं ॥ २ ॥ इति प्रवचनसारोवारे. ए त्रीशीयो घणा प्रकारें बे. G ( उवद्याया के०) उपाध्याय ते जेनी पासें आवीने सूत्र जपीयें, ते जाणवा. ( तब के०) तिहां आचार्य अने उपाध्यायने विषे साधु थ की ( विसेसगुणसंपया के ) विशेष गुण संपदा डे, माटें साधुथकी जूदा कह्या २ ॥ यतः ॥ पडिरूवो तेयस्सी, जुगप्पहाणंगमो मदुरवक्को ॥ गंनी रो धीमंतो, उवएसपरो य थायरी ॥१॥ अपरिस्सावि सोमो, संगह सीलो अनिग्गह मईय ॥ अविकंचणो अचवलो, संपंत हिय गुरू होई ॥३॥ एवा श्रीआचार्य नगवान् तेना पदने जे योग्य होय,तेहने उपाध्या य पद देवाय. तेमाटें उपाध्याय पण एवाज गुणवंत जोये ॥१५॥ ए (पवयण के०) प्रवचन ते (असेससंघो के० ) अशेष एटले सम स्त श्रीसंघनें कहीयें जेमाटें साधु, साध्वी, श्रावक, अने श्राविका, ए चा रे श्रीतीर्थकरनी आज्ञा पाले अाज्ञायुक्त होय ते प्रवचन कहीयें ॥ यतः
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy