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________________ १६७ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. १ श्रीसीमंधरादिक वीश विहारमान तीर्थकरनां नामस्मरणादिकें करी, तेमना चरित्र वांचवे करी, गुणस्तुति करवे करी, जे नक्ति करवी ते अरि हंतनो विनय जाणवो. ५ नमो सिक्षाएं ए पद गणवे करी सिधनी अवस्था ध्यायी पूजा क रवे करी सिनो विनय थाय. ३ चैत्योहार करवे करी,प्रसाद कराववे करी, बिंबप्रतिष्ठा,बिंबपूजा, बि बने मल टालवे करी, सत्तरनेदें पूजा करवे करी, बिंबने राज्यनय, अनि जय, जलनयादिकथी राखवे करी, चैत्यपुंजवे करी, चैत्यने चुनादिकथी घोलवे करी एम अनेक प्रकारे चैत्यनो विनय जाणवो ॥ ४ श्रुतलखाववे करी, पुस्तक साचववे करी,पुस्तकने शोधवे करी, ज्ञान जगवे नणाववे करी, पाठां पूंजणी रुमाल विटांगणा प्रमुख पुस्तकना न पकरण करवे करी, पुस्तकने अग्निनय जलजयादिकथी राखवे करी इत्या दिक अनेक प्रकारे श्रुतनो विनय थाय. __५ धर्मनी प्रशंसा करवे करी, मुग्धजनने धर्म पमाडवे करी, धर्मनी स्थापना करवे करी, पौषध सामायिक प्रमुख धर्म करवे करी, श्रावकना छादश व्रत पालवे करी, दशविध यतिधर्म पालवे करीधर्मनो विनय जाणवो. ___६ साधुवर्गने अशनादिक आपवे करी,वातादिक विकारें तेलमर्दनादिक करवे करी,रोग उपने थके वैद्य तेडी लावी औषध कराववे करी,सन्निपाता दिक रोगविशेष आकरी चिकित्सा कराववे करी,परिश्रांत साधुने विश्रामण करवे करी,कांटा काढवे करी,ए रीतें विचित्र प्रकारें साधुवर्गनो विनय जावो. ___ आचार्य श्रावते थके तेमनी साहामा जाववे करी, कर्पूर तथा सुवर्णा दिकना पुष्पोथी पूजवे करी, ग्रीष्मरुतुने विषे विलेपन करवे करी, आचा येने योग्य एवा गुआमान वस्त्रादिक वहोराववे करी, आचार्य श्रावे थके उना थावे करी, पुस्तक लखावीने आपवे करी, गुणप्रशंसा करवे करी त्यादि अनेक प्रकारें आचार्यनो विनय जाणवो ॥ G उपाध्यायनो विनय पण आचार्यनी पेठेज जाणवो. ए प्रवचननी प्रशंसा करवे करी, प्रवचननो उफाड टालवे करी, प्रति छादिक महोटा कार्य करवे करी, प्रवचनने दीपाववे करी, राजा तथा मह न्यने प्रतिबोधवे करी इत्यादि अनेक प्रकारे प्रवचननो विनय थाय.
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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