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________________ श्रीसमम्यक्त्वसित्तरी. तो देखी पुष्पगुक कुलपतिने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामिन् ! कोई एक रू डो असवार अतिथि प्रापगी पासें आवेने, माटे यासन यापो. खान पान तैय्यार करी एनी परोणागत करो. ते सांजली तापस सावधान थ या. राजाने आसन आपीआगल वनफलादिक मूक्यां. राजा वनफल था रोगी स्वस्थ थइ पनी वेदु सूडाना बोलवामां महोटो तफावत जाणी श्रा श्चर्य पाम्यो थको पूबवा लाग्यो. के तमें बेदु सूडा सरखा देखा डो. तेम बतां गुण दोषमां एवडो श्यो अंतर पड्यो ? ते सांजली पुष्पगुक कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! अमारा माता पिता एकज , साथेंज जन्म्या बैयें, पण तेणे रात्रिदिवस चोरोनी संगति करी ,अने मने तापसोनी संगत जे. माटे जेवी संगत तेवी बुद्धि थाय ,ते वचन सांजली राजा हर्ष पाम्यो,ए टलामां राजानुं लश्कर पण त्यां आवी पहोच्युं, पनी राजा तापसो पा सेंथी रजा मागी पोतानी नगरीये आव्यो, अने संगतने लीधे दोप गुण प्राप्तिनी प्रशंसा करवा लाग्यो. इति कथा ॥ ए सुविहित शुद्ध प्ररूपकना मुखथी शास्त्र सांजलवां पण अन्य दर्शनीना कुशास्त्र सनिलवां नहिं. एवो सदहणानो चोथो नेद दृष्टांतसहित कह्यो॥ इतिश्रीतपागजालंकार नट्टारक श्रीहरि विजयसूरीश्वर पट्टालंकार श्रीवि जयसेनसूरीश्वर पट्टप्रानाविक श्रीविजयदेवसूरि विजयमानराज्ये महो पाध्याय श्रीसकलचंगणिशिष्य श्रीजंबूदीप प्रज्ञप्तिनपांगवृत्तिकारक महो पाध्याय श्रीशांतिचंगणि शिष्योपाध्याय श्रीरत्नचंगणिनिः श्रीसम्यक्त्व रत्नाधिष्ठान श्रीसूर्यपुरादि चतुर्विधसंघस्य चतुर्दशाष्टम्यादिपर्वसु अप्रमत्त तपपौषध प्रतिपालनार्थ विरचिते श्रीसम्यक्रत्नप्रकाशिनामनि श्रीसम्य क सप्ततिप्रकरणबालावबोधे चतुर्नेदश्रदानस्वरूपनिरूपणनामा प्रथमोऽ धिकारः संपूर्णः ॥ १ ॥ हवे समकेतना त्रण लिंग कहे :॥ परमागम सुस्सूसा,अपुरा धम्म साहणे परमो जिव गुरु वेया वच्चे, नियमो सम्मत लिंगाइ ॥ १३ ॥ अर्थः-प्रथम (परमागम सुस्त सा के०) परम प्ररुष्ट आगमने विषे शुश्रूषा एटले सांजलवानी वांबा होय यतः ॥ सुस्सूसइ पडिपुलर, सुणे गिएहश्य एयावि ॥ तत्तो अपोह एवा, धारे करे वा सम्मं ॥ यदागमः ॥ सवणे नाणेय विनाणे,पञ्चरकाणेय सं
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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