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________________ श्रीसम्यक्त्वसित्तरी. २५५ त्मानो हितवंडक थयो होत, तो नगवानना " कयमाणेकडे” इत्यादिक वचन बापत नहीं, तो इहलोकें लोकनिंदाने विपे पडत नहीं अने नि न्हव कहीने लोक वगोj करत नहिं. पण नगवंतनां वचन महापीने निन्हव थयो,लोकोमा निंदा पाम्यो, वगोवाणो अने जगवाने कुशिष्य करी बोलाव्यो, वली संसारमा अनंता नव करशे. ए उपदेशमालानी हेयोपा देय वृत्तिमां तथा उपदेशमालानी सिझर्षिकत वृत्तिमा कडं . ते जमालीनो जीव तिर्यंच तथा मनुष्य तथा देवताने विषे केटलाएक नवन्रमण करीने फुरंत घणाकालें श्रीमाहाविदेहने विषे मनुष्य जन्म पा मी मोदनगरें जाशे. ए उपदेशमालानी कर्णिकामां कयुं . हमणां लांतकदेवलोकथी चवीने पनी तिर्यंच तथा मनुष्यने विषे पां चवार जमीने हडे सम्यक्त्व पामी मोदप्रत्ये पामशे. इति वीरचरित्रे॥ तथा वीरजगवाननी पुत्री महासती साधवी हती, तेणें जश्ने जमाली ने प्रतिबोध्यो पण बज्यो नहीं, निन्दव थयो घणीज तपस्या करी तो पण अनंतसंसार उपायो, ए वात श्रीसोमसुंदर सूरिक्त उपदेशमालाना बालावबोधमां तथा श्रीहरि विजयसूरिप्रसादें करेला प्रश्नोत्तरसमुच्चय ग्रं थमाहे कही . तथा श्रीनगवतीसूत्रानुसारें पन्नरनव संसारमा करवा क ह्या . इत्यादिक घणा ग्रंथोनी जूदी जूदी साख जोड्ने जमालीना नव आश्रयी को हठ करशो मां. ज्यां जेहवो पाठ देखो,त्यां तेहबुं व्याख्यान करजो. तत्त्व तो केवलीगम्य ले. जेवट केवलीयें दी होय अने जे केवली ये कह्यु होय, तेज प्रमाण ले, एम कहेजो. जेथीलूटकबारो थाय पण पो ताना हल्थी नवा अर्थ करशो नहीं, जे ए वातने विषे हो करीने स्वम त कदाग्रह पोषशे, ते जमालीनी पेठे दीर्घसंसार परिचमण करशे. अने ते जमालीनीज पंक्तिमां बेठो गणाशे. एत्रीजी सदहणानुं स्वरूप कडुं. हवे कुदृष्टि वर्जन रूप सदहणानो चोथो नेद वखाणे :॥ मोहिऊ मंदमई, कुहिहि पयणेहिं गुविल ढंढेहिं ॥ दूरेण वङियवा, तेण में सु६ बुद्धीहिं ॥ १२॥ अर्थः-(मोहिजर के०) मोह पमाडी ये अज्ञान मांहे पाडीयें (मंदमई के०) मंदमति एटले तुब बुद्धिवाला जीवो प्रत्ये जे कारणमाटे जे उत्तम बुद्धिवाला जीवो ले तेमने तो मि थ्यात्वीनी संगति लागेज नहीं जेम सर्पना मणिने सर्पनी दाढा संबंधी
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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