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________________ ३४४ जैनकथा रत्नकोष नाग बीजो. वृंद रे, धन्य नांखे म गोविंद रे ॥ क ॥२०॥ राजीमती रुक्मिणी मुहा रे, धन्य जादवनी नार ॥ गृहवास बमीने जिणे, लीधो वर संजम नार रे, इम नावना जावे उदार रे, पण वेदननो नहिं पार रे, थयो वात प्र कोप प्रचार रे ॥ क० ॥ २१ ॥ ते पुःखमा वली सोनरी रे, धारिका नय रीनी शदि॥ सहस वरस मुफने थयां, पण एम मुफ किणही न कीध रे, जेम दैपायनें फुःख दीध रे, हुँ एकलमल परसिद रे, पण ए सुःख देवा गि रे॥ क० ॥॥ जो दे हवे तेहने रे, तो क्ष्य थाj तास ॥ तास उदरथी कुल सवे, काटुं पुर क्षि विलास रे, इम रौइध्यान अन्या स रे, बूटो तिहां आयुपास रे, मरी पोहता नरकावास रे ॥ क० ॥ २३ ॥सोल वरस कुमरपणे रे, बपन वरस मंमलीक ॥ नवशे याविश जा पियें, वासुदेवपणे तह कीक रे, जिहां कर्म कस्यां तिहां तीक रे, त्रीजी नरक दुःख बीहिक रे, पहोता तेहमां न अलीक रे॥क०॥ २४ ॥ चोथे खंमें पूरण थई रे, प्रगट ए पांचमी ढाल ॥ पांच ढालें पूरो थयो, त्रीजो अधिकार रसाल रे, गुरु उत्तमविजय कृपाल रे, तस शिष्य पद्म कहे बाल रे, सुणतां होय मंगलमाल रे ॥क० ॥२५॥ सर्वगाथा ॥१५२॥ इतिश्रीम तमो॥धारिकादाह कृष्णावसानकीर्तन नामा चतुर्थखमे तृतियोऽधिकारः॥ ॥अथ चतुर्थखंमस्य चतुर्थाधिकार प्रारंनः॥ ॥दोहा॥ ॥ श्री अरिहंत उपगारीया, तिमसिज जगवान ॥ सूरि वाचक मुनि वर नमुं, हैडे पाणी ध्यान ॥१॥ पद्मपत्र पुटमां नरी, जल लेाव्या राम ॥ अपशकुनें करी वारिया,स्खलना लेहता ताम ॥२॥ आव्या कृष्ण पोढ्या जिहां, कंध्यां दीसे एह ॥ एम चिंती ऊना रहे, एक क्षण श्रीबल ते ह ॥३॥ मुख ऊपर बहु मदिका, देखीने बलदेव ॥ वस्त्र दूर करिने जुवे, मृत जाण्या ततखेव ॥४॥ नेह घणा नाइकपर, दुया जेम वजघात ॥ मा आवीने तिहां, कीधो पृथ्वीपात ॥ ५ ॥ शीतल वातादिकथकी, चे तन पाम्या जाम ॥ सिंहनाद मूके तिहां, माहानीम तव राम ॥६॥ श्वाप द सदु कंप्या तिहां, पडे ते पर्वतशृंग ॥ राम कहे मुफ भ्रातनो, किण क यो गातर जंग ॥ ७ ॥ प्रगट था ते पापीयो, जो दोय मुजट सतेज ॥
SR No.010247
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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