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________________ 8.४ जनस्वारनकोष प्रस्तावना. श्रीजैनकथा रत्नकोष नामना पुस्तकना पत्नर नाग मांहेलो था प्रथ म नाग बबई बाहेर पड्यो , तेमां प्रथम बाल जीवोने नीति तथा वैरा ग्यादि सन्मार्गोनो बोध थवा माटे सिंदूरप्रकर नामा ग्रंथ मूल तथा तेनी टीका, नाषा, बालावबोध अने कथा सहित दाखल करेलो . या ग्रंथ मां नीति वगैरे विषयोनुं एकी रीतें यथातथ्य निरूपण करेलु , के वांच नारा साहेबोने हाबेहूब ते वात तैवाज स्वरूपें परिणम्याविना रहेज नहि. वली एवी रीतें ए.ग्रंथ मांहेला विषयो हृदयमा प्रवेश थया पली वांच नार जनोमां तेवी रीतनी प्रकृति पण अवश्य थवी, जोश्ये, के जेथी ते वांचनारा श्रीवीतराग परमात्मानी नक्ति करवाने योग्य याय, माटे ते पड़ी तुरत बीजो ग्रंथ श्रीमन्महापंमित श्रीहेमाचार्यजी विरचित श्रीवीतरागस्त व अर्थ सहित या ग्रंथमा दाखल करेलो . या ग्रंथ वांच्या नण्या पडी. संसारमा प्राणी. मात्रने सुख उखनी प्रातिना हेतुनूत एवां जे गुनागुन कर्म ले तेनुं स्वरूप जाणीने तेथी विरक्त थवानो उद्यम करवी जोश्य. ते. समजवा माटे श्रीगौतमप्टन्डा नामा ग्रंथने मूल, बालावबोध समर कथा सहित था जागमां बाप्यो . या ग्रंथमां श्रीगौतमस्वामी जीवने सुख उखनी प्राप्तिनां जूदांजूदां घडतालीश प्रश्न पूजवाथी श्रीमहावीर स्वामीयें शुनाशुन कर्मोनां फल दृष्टांतिक कथा सहिंत. कही देखाज्यां . जे वां चवाथी वांचनारा साहेबो संसारथ जय पामता थका मनुष्यनव पामीने धर्म मार्गमा प्रवर्तवाने उजमाल थानअने ते पड़ी वली संसारना विक टपणानी दर्शावनारी एवी एक न्हानी हरियाली अर्थ सहित नापी ले.ते
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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