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________________ हरियाली अर्थ सहित. 307 // अथ हरीयाली // // सेवक आगल साहेब नाचे, बढ़े गंगाजल खारे.॥ गर्दन साटे गयवर वेच्या, ए अचरिज मोहे नारे ॥१॥चतुरनर बूमो ए हरियाली // जेम उत्तरादु देहि संजाली॥ ए बांकणी॥ अर्थः-कर्मरूपीया सेवकंनी आगल जीवरूपीन राजा नाचे ने तथा गंगा नदीना मीठा जल समान जे जैनवाणी छे तेना खारा जलसमान खोटा अर्थ केटलाएक मतवादीयो करे डे तथा प्रमादरूप गर्दननी आगल संयमरूप हाथी वेचाय ; अर्थात् केटलाएक संयमधारको प्रमादने वश पड़ी चोखं चारित्र पाली शक्ता नथी माटे ए मुंफने महोटं आश्चर्य थाय ने // 1 // चतुर जनो ए हरीयाली तमें समजो अने एनो वृत्तर संजाली आपो. ॥मांकडनें वश जोगी नाच्यो, मास्यो सिंह शियाले // एक चीटीये पर्वत ढायो, अचरिज इण कलिकाले // च // 2 // अर्थः-मनरूपी मांकडाने वश पड्या थका असंयति योगीजनो नाचे नेत था शीलरूपी सिंहने कामरूपी शीयालीये मास्यो तथा एक तृमारूपी कीटिका यें संतोषरूपी पर्वतने पाडी नारख्यो. ए अचरिज कलिकालमांहे देखाय // 2 // // सुरतरु शाखायें कागज बेगे, विषधर गरुड विमारे // कस्तूरी परनाशे वाहे, लसण नमु नझारें // 3 // च // अर्थः-जिनशासनरूपीया कल्पवृदनी ऊपर कुगुरु रूपीन कागड़ो बेगे तथा क्रोधरूपी सर्प ते झानरूपी गरुडने विमारे छे तथा समतारूप कस्तूरी डे तेने असत्य वचनरूप परनालिकामांहे वहावी दीधी अने ममता जुर्ग धरूप लसणनो संचय करी नंमारमी नस्यो रे // 3 // आंबो अकफल एक तरु लागा, हंस काग एक माले // __ मेंढे नाहर लातें मास्यो, नासीगयो पातालें // 4 // च०॥ अर्थः-जीवरूपी एक रद तेने विषे आंबाना फल समान सुख लागां अने आकडाना फलसमान कुःख लागां एम बै जातनां फल एक जीव रूप तदनेविषे लागां. तथा एकज जीवरूपी मालो तेनी नपर पुण्यरूप हं सपदी अने पापरूप काकपदी आवी बेग तथा अज्ञानरूप मेंढें, विवेक रूपी नाहर एटले सिंदू तेने लातें मास्यो परहो टाल्यो // 4 //
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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