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________________ २६० जैनकथा रत्नकोष नाग पदेलो. पेखें हाथमांथी जती रहे, एवी लक्ष्मीने अर्थे कोण मरीने व्यर्थ हीरा जे वा मनुष्यनवने निःफल करै, इत्यादिक उपदेश सांजली शेठ प्रतिबोध पाम्यो मुनिनी पासेंथी दीक्षा लइ सूत्र नगी गीतार्थ अयो,अवधिज्ञान ऊपy.एवो सुधनझषि विहार करतो उत्तरं मथुरायें समुदत्तशेठने घरे व्रहोरवा आव्यो. तेने घरे पोताना सुवर्णपाट, कूमी, लोटी, कचोली, थाल, देरासर प्र मुख सर्व दीवां अने उलखी लीधां: सोनाना ख़ांमा थालमां समुदत्त शेग्ने जमता दीठा. ए रीतें ते इषिने पोताना घरमां अरहो परहो फर तो अने वस्तुनने जोतो देखी शेखें पूज्युं के महाराज! मुंजु बो ? ते धारें रुपियें कयुं के हे शेठ ! श्रा पाट, कुंमी, कचोलां, थाल प्रमुख तमें करावेलां वे किंवा तमारा पूर्वजोनां करावेलां बे ? शेवें कह्यु ए प्रथ मथीज महारा घरमा . शषियें कह्यु के तमें आवा खांमा थालमां शामा टें जमो बो ? शेतें कह्यु के गुं करीयें ए थालमा खेम चहोटतो नथी. एट ले शषियें केडमांथी, थालनो खंग काहाडी थाल पाडीने तेनी साथें मे लव्यो. एटले पोतानी मेलें चहोटी गयो. थाल संपूर्ण अखेम थयो, ते जोइने शेतना कुटुंबने कौतुक थयु. साधुयें चालवा मांमयुं, तेने शेवें वंद ना करी प्रब्यूं के महाराज! ए शीवात ? साधुयें कयुं के तुंअसत्य बो ले ले, तो तुमने ढुंगुं कहुं ! ! शेवें कडं के दुं असत्य बोल्यो बुं, परंतु ख री वातं तो एंज ले जे ए दिने महारे घेर आवे आठ वर्ष थयां ले. साधुयें कह्यु के ए दि में उसखी जे. ए सर्व महारा पितानापितानी वारनी बे, पण महारा पिता मरण पाम्यानंतर दुं तेनो सुधन नामें पुत्र हतो, ते महारा हाथथी गइ, तेथी में वैराग्य पामी दीदा लीधी. मनें अ वधिज्ञान ऊपy डे, तेथी ढुं शहां आव्यो बुं. शेवें कह्यु के ए लक्ष्मी सर्वे तमारीज डे. हवे एने व्यो अने सुख जोगवो. साधु बोल्या के महारा देख तां तो ए जती रही. माटें हुं हवे एने शी रीतें जोगवं? शेतें प्रयु के हे जगवन् ! तमारा हाथथी गइ अने अमारे घेर ावी, तेनुं कारण गुं दशे? तेवारें इषि बोल्या के पूर्व श्रीपुर नगरें जिनदत्तशेठ वसे ने, तेनो एक पद्माकर अने बीजो गुणाकर, एवे बे नामें बे पुत्र हता, ते शेजें मरती व रखतें निधान कही समजाव्यु. जे अमुक जगायें इव्य राखेर्नु . पनी म होटा जायें रात्रिय बानो जश्ने निधान मांहेलुं सर्व इव्य कहाढी लीधुं.
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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