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________________ २४७ जैनकथा रत्नकोष नाग पदेलो. ___ अर्थः-(लक्ष्मीः के) लक्ष्मी, (नीचं के०) नीच पुरुषप्रत्ये (सर्पति के०)जा य. शा माटें जाय जे ? तो त्यां नत्प्रेक्षा करे . के (अर्णवपयःसंगादिव के०) समुश्जलना संगथकी जेम जाल , ते नीचगामी तेम लक्ष्मी पण जलसं गथकी नीचगामी थइ जे. कारण के लक्ष्मीनी मृत्मत्ति समु जलथीज डे अ र्थात् समुजल पिता होवाथी ते नीचगामी . वली लक्ष्मी (कापि के०) को पण (पदं के०) स्थानकने (नधत्ते के०) नथीधारण करती. केम के, (अंनोजि नीसंसर्गात् के०) कमलिनीना संयोगपकी (कंटकाकुलपदाश्व के०) कांटायें करी व्याप्त ने पग जेना एवीज जापीयें होय नही एटले जेम कोस्ने कांटा वाग्या होय तेने पीडा होवाथी क्यांय पग मामी सके नही तेम लक्ष्मी पण एकस्था रहेती नथी. वली लक्ष्मी (नृणां के०) मनुष्योना (चैतन्यं के०) झा नने (अंजसा के०) अनायासें करी (उजासयति के०) गमावे ने शा माटें ? तो के ते (विषसन्निधेरिव के०) विषना सन्निधिपणा थकीज जाणीय होय नही कारण के विषनुं अने लक्ष्मी, स्थानक एक समुज . (तत् के०) ते कारणमाटें (गुणिनिःके) गुणिजनोयें (धर्मस्थाननियोजनेन के०) धर्मस्था नमां तेना व्ययने करवे. करी (अस्याः के०) मा लक्ष्मीनु (फलं के०) फल, (ग्राह्यं के०) ग्रहण करवा योग्य जे. अर्थात् पुण्यकार्यमा जे लक्ष्मी वापरे, ते लक्ष्मीनुं फल पामें ॥७६॥ इति सप्तदश लक्ष्मीस्वनावप्रक्रमः॥ १७ ॥ टीकाः-उपमानेन श्रीस्वरूपमाह ॥ लक्ष्मीः नीचं सर्पति नीचं जनंप्र तियाति। कस्मात् ? नत्प्रेदते । अऽर्णवपयः संगात् समुज्जलसंगमान्नीचगामि न्यनूत्। पुनर्लक्ष्मीः कापि पदं स्थानं च न धत्ते न स्थापयति । कीदृशी ? अं जोजिनीसंसर्गात् कमलिनीसंयोगादिव ।कंटकाकुलपदा कंटकैप्प्तचरणेव ॥ पुनर्लक्ष्मीनृणां पुंसां चैतन्यं ज्ञानं अंजसा वेगेनोजासयति गमयति । क स्मात् विषसंनिधेर्विषसामीप्यादिव लदम्याः विषस्य च समुश्स्थानत्वात् तस्मात्कारणात् गुणिनिर्जनैर्धर्मस्थाननियोजनेन धर्मस्थानव्ययकरणेना स्याः लदम्याः फलं ग्राह्यं सफला कर्तव्येत्यर्थः ॥ ७६ ॥ सिंदूरप्रकरग्रंथ, व्याख्यायांहर्षकीर्तिनिः॥सूरिनिर्विहितायांतु,लक्ष्म्याश्च प्रक्रमोऽजनि॥१७॥ नाषाकाव्य-वृत्त ऊपर प्रमाणे॥नीचहीकी औरकुं उमंगी चलै कमलासु, पिता सिंधु सलिल सुनाउ याहि दियो है॥ रहै न सुस्थिर व्है सकंटक चरन याको, वसि कंजमांहि कंजकोसो पद कियो है॥जाकों मिलै हितसों अचेत
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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