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________________ ए६ जैनकथा रत्नकोष नाग पहेलो. लटि होश हित ॥ लीला तलाव सम उदधि जल, गृह समान अटवी वि कट ॥ श्ह विध अनेक उख हो सुख, शीलवंत नरके निकट ॥ ४० ॥ . हवे परियहंना दोषो कहे . कालुष्यं जनयन जडस्य .रचयन् 'धर्मजुमोन्मूलनम्, क्लिश्यन्नीतिकृपादमाकमलिनीलॊनांबुधिं वईयन् ॥ मर्यादातटमुजन् शुनमनोदंसप्रवासं दिशन्, किं न क्लेशकरः परिग्रदनदीपूरः प्ररहिं गतः॥४॥ अर्थः-(परिग्रह के०) धन, धान्य, क्षेत्र, गृह, रूप्य, सुवर्ण, कूप्य, हिपद, चतुःपद, ए नवविध परियहरूप जे (नदीपूरः के०) नदीनो प्रवाह, ते (प्रवृद्धिंगतः के०) अति दिने पामतो. बतो (किं के०) गुं (क्लेशकरः के०) क्लेशने करवावालो (न के०) नथी थातो ? अर्थात् थायज . हवे परिय हने नदीना पूरन्दी सादृश्यता कहे जै. ते परिग्रहरूप नदीपूर युं करतो बतो वृद्धिंगत थाय जे.? तो के (जडस्य के) जडपुरुषोना (कालुष्यं के०) क्लिष्ट अध्यवसोयने ( जनयन के०) उत्पन्न करतो बतो वृद्धिंगत थाय डे. अने नदीनो पूर पण (जडस्य के) जलन (कानुष्यं के०) कलुषित पणा ने (जनयन् के०) उत्पन्न करे .. "जडस्य" ए पदमां डकार , तेथी जल एवो अर्थ न थाय, परंतु व्याकरणने नियमें करी डकारने लकारनुं ऐक्य में तेथी थाय. वली (धर्मामोन्मूलनं के) धर्मरूपसदनु जे उन्मूलन तेने (र चयन के०) करतो बतो वृद्धिंगत थाय अने नंदीपूर पण पृथ्वीगत वृदोने नखेडी नाखतो बतो वृद्धिने पामे बे. वली (नीतिपादमा के०) न्याय, दया, अने दांति ते रूप (कमलिनी के०) कमलिनी जेतेने (क्लिश्यन् के०) क्लेश पमाडतो तो वृद्धि पामे बे. अने नदीनो पूर पण कमलिनीने पीडा पमाडे बे. वली (लोनांबुधिं के०) लोनरूप समुने (वयन के०) वधारतो बतो वृद्धि पामे , अने नदीनो पूर पण समुज्ने वधारनारो ने. वली (म र्यादातटं के० ) धर्मरूप मर्यादानुं तट जे चारित्रादिक तेने (उजन के०) पीडा पमाडतो बतो वृद्धि पामे ,अने नदीनो पूर पण वृद्धि पामतो बतो नदीना तटने पाडी नाखे . तथा (गुनमनोहंसप्रवासं के०) धर्म ध्यान युक्त जे मन, ते रूप हंस तेने परदेश गमन प्रत्यें (दिशन् के०) देतो तो
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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