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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला चक्रवर्ती के द्वारा सूर्य के जिनबिंब का दर्शन जब सूर्य पहली गली में आता है तब अयोध्या नगरी के भीतर अपने भवन के ऊपर स्थित चक्रवर्ती सूर्य विमान में स्थित जिन विव का दर्शन करते हैं । इस समय सूर्य अभ्यंतर गली की परिधि ३१५०८६ योजन को ६० मुहूर्त में पूरा करता है । इस गली में सूर्य निषध पर्वत पर उदित होता है वहां से उसे अयोध्या नगरी के ऊपर आने में है मुहूर्त लगते हैं। अब जब वह ३१५०८६ योजन प्रमाण उस वीथी को ६० मुहूर्त में पूर्ण करता है तब वह ह मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पूरा करेगा। इस प्रकार राशिक करने पर :-२१४:5Exe=४७२६३% योजन अर्थात् १८६०५३४००० मील होता है। पक्ष-मास-वर्ष भादि का प्रमाण जितने काल में एक परमाणु आकाश के १ प्रदेश को लांघता है उतने काल को १ समय कहते हैं। ऐसे असंख्यात समयों की १ प्रावली होती है। अर्थात् - असंख्यात समयों की १ प्रावली संख्यात प्रावलियों का १ उच्छवास ७ उच्छवासों का १ स्तोक ७ स्तोकों का १ लव ३८६ लवों की १ नाली' १. नाली अर्थात् घटिका । २४ मिनट की १ घड़ी होती है उसे ही नाली या घटिका कहते हैं।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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