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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला ___ इतने प्रमाण गमन क्षेत्र में १८४ गलियां हैं । इन गलियों में सूर्य क्रमशः एक-एक गली में संचार करते हैं। इस प्रकार जंबूद्वीप में दो सूर्य तथा दो चन्द्रमा हैं। इस ५१०१६ योजन के गमन क्षेत्र में सूर्य विम्ब को १-१ गली १६ योजन प्रमाण वाली है। एक गली से दूसरी गली का अन्तराल :-२ योजन का है। अत: १८४ गलियों का प्रमाण १८. १८४=१४४१६ योजन हुआ। इस प्रमाण को ५१०६६ योजन गमन क्षेत्र में से घटाने पर ५१०६६ - १४४६-३६६ योजन कुल गलियों का अंतराल क्षेत्र रहा। ३६६ योजन में एक कम गलियों का अर्थात् गलियों के अन्तर १८३ हैं उसका भाग देने से गलियों के अन्तर का प्रमाण ३६६ : १८३=२ योजन (८००० मील) का आता है । इस अन्तर में सूर्य की १ गली का प्रमाण योजन को मिलाने से सूर्य के प्रतिदिन के गमन क्षेत्र का प्रमाण २१६ योजन (१११४७१३ मील) का हो जाता है। इन गलियों में एक-एक गलो में दोनों मूर्य प्रामने-सामने रहते हुये १ दिन रात्रि (३० मुहूर्त) में एक गलो के भ्रमण को पूरा करते हैं।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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