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________________ वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला अंत के द्वीप और समुद्र का नाम स्वयंभूरमणद्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र है । कालोदधि समुद्र के वाद पाये जाने वाले असंख्यातों द्वीपों और समुद्रों के नाम सदृश ही हैं । अर्थात् जो द्वीप का नाम है वही समुद्र का नाम है। पांचवें समुद्र का नाम क्षोरोदधि समुद्र है। इस समुद्र का जल दूध के समान है । भगवान के जन्माभिषेक के समय देवगण इसी समुद्र का जल लाकर भगवान का अभिषेक करते हैं। आटवां नंदीश्वर नाम का द्वीप है। इसमें ५२ जिनचैत्यालय हैं। प्रत्येक दिशा में १३-१३ चैत्यालय हैं। देव गण वहाँ भक्ति से दर्शन पूजन आदि करके महान पुण्य संपादन करते रहते हैं। ___ जंबूद्वीप के मध्य में १ लाख योजन ऊंचा तथा १० हजार योजन विस्तार वाला सुमेरु पर्वत' है । इस जंबूद्वीप में ६ कुलाचल (पर्वत) एवं ७ क्षेत्र हैं। ६ कुलाचलों के नाम-(१) हिमवान् (२) महाहिमवान् (३) निषध (४) नील (५) रुक्मि (६) शिखरी। (७) क्षेत्रों के नाम-(१) भरत (२) हैमवत (३) हरि (४) विदेह (५) रम्यक (६) हैरण्यवत (७) ऐरावत । जंबूद्वीप के भरत आदि क्षेत्रों एवं पर्वतों का प्रमाण भरत क्षेत्र का विस्तार जंबूद्वीप के विस्तार का १६० वां भाग है । अर्थात् १० --५२६६१ योजन अर्थात् २१०५२६३ मील १. यह पर्वत विदेह क्षेत्र के बीच में है।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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