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________________ 27 मैदान पर जैन भूगोल अर्थात् जम्बूद्वीप को वृहत् रचना का निर्माण किया जाय जिसके मध्म में १०१ फुट ऊंचा सुमेरु पर्वत बहुत दूर से हो दर्शकों के मन को मोहित करने वाला होगा। बाग-बगीचों, नदी-फव्वारों से युक्त बिजली की अलौकिक शोभा को देखने के लिए कोन आतुरित नहीं होगा। यह रचना देशविदेश के लोगों के आकर्षण का केन्द्र होगी। यह केवल मात्र मंदिर नहीं होगा किन्तु शिक्षाप्रद संस्थान एवं जैन धर्म तथा जैन भूगोल का मूक्ष्मता से ज्ञान प्राप्त करने के लिये अनुसंधान केन्द्र के रूप में होगा। यह अमर कृति देश-विदेश के पर्यटकों के लिये दर्शनीय स्थल बनकर हजारों वर्षों तक निर्वाण महोत्सव की याद दिलाता रहेगी। प्रसन्नता की बात है कि उक्त रचना के निर्माण हेतु पहाड़ी धीरज की जैन समाज ने सर्वप्रथम (प्रारंभिक चरण रूप में) योगदान हेतु निर्णय कर लिया है। जिसमें समस्त दिल्ली की जैन समाज ही नहीं अपितु अखिल भारत की जैन समाज का सहयोग अपेक्षित है। ____ निर्माण कार्य हेतु दि० जैन समाज नजफगढ़ दिल्ली ने ५० हजार वर्ग गज भूमि प्रदान की है। श्री वीरप्रभु से प्रार्थना करते हैं कि पू० माताजी का शुभाशीष चिरकाल तक प्राप्त होता रहे। शतशः नमोऽस्तु ! नमोऽस्तु ! नमोऽस्तु !
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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