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________________ 19 पूज्य माताजी का जन्म एक ऐसे जैन परिवार में हुमा जो सदा से धर्मनिष्ठ रहा है। आपकी पुण्य जन्मस्थली टिकंतनगर [लखनऊ निकटस्थ, जिला बाराबंकी उ० प्र०] है। यह वह भाग्यशाली नगरी है जिसे अनंत तीर्थकरों की जन्मभूमि अयोध्या का सामीप्य प्राप्त है । जहाँ आपने गोयल गोत्रीय अग्रवाल जैन परिवार के श्रष्ठी श्री छोटेलालजी की ध. प. श्रीमति मोहिनी देवा की पवित्र कोख से प्रथम संतान के रूप में जन्म लिया। ईस्वी सन् १९३४ तदनुसार वि. सं. १६६१ के प्रासोज मास के शुक्ल पक्ष की उम रात्रि ने पापको प्रकट किया जबकि चन्द्रमा पूर्ण रूप से विकसित होकर शुभ्र ज्योत्सना से सम्पूर्ण आलोक को प्रकाशित करते हुये अपने-आपको प्रफुल्लित कर सर्वत्र आनन्द वृष्टिकर रहा था। वर्ष भर में एक ही बार पाने वाले उस दिन को अग्विल भारत शरदपूणिमा के नाम से जानता है । वैसे कन्या का जन्म साधारणतया घर में कुछ समय क्षोभ उत्पन्न कर देता है किन्तु विश्व में अनादिकाल से पुरुषों के समान नारियों ने भी महान कार्य कर धराको गौरवान्वित किया है, बल्कि यों भी कह सकते हैं कि सतियों के सतीत्व के बल पर ही धम को परम्परा अक्षण्ण बनी हुई है। भारतीय परम्परा में वैदिक संस्कृति ने कन्या को १४ रत्नों में से एक रत्न माना है । कान जानता था कि छोटे गांव में जन्म लेने वाली-माता मोहिना देवी का प्रथम संतान के रूप में यह "कन्या रत्न" • भविष्य में चारित्र नौका पर आरुढ़ होकर सारे देश में जैन धर्म को ध्वजा लहरायेगो । स्वयं भी संसार समुद्र से पार होगी एवं औरों को भी पार उतारेगी। माता मोहिनो देवी ने बड़े प्रम से पुत्री का नाम 'मैना' रखा, किन्तु उसे मालूम नहीं था कि वास्तव में यह मैना एकदिन गृह
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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