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________________ लेखक के प्रति दो शब्द प्रस्तुत 'जैनज्योतिर्लोक' नामक पुस्तक समयोचित एवं सारगर्भित है । विभिन्न ग्रन्थसागर का मन्थन करके गृह नक्षत्रों की व्यवस्था सम्बन्धी प्रकरण तथा भूलोक एवं प्रकृत्रिम चैत्यालयों का सुन्दररीत्या विवरण संकलित किया गया है । पुस्तक के आद्योपान्त पठन से वैज्ञानिकों की खोज की वास्तविकता का अन्दाज भली प्रकार लगाया जा सकता है कि वे लोग चन्द्रयात्रा में कहां तक सफलीभूत हुए हैं तथा उनका अन्वेषण कितने ग्रंथों में सत्य है । -- पुस्तक के लेखक श्री मोतीचन्द जी सराफ मध्यप्रदेश के सुप्रसिद्ध शहर इन्दोर के निकट सनावद नगर के निवासी हैं । आपके पिताजी का नाम श्री अमोलकचन्द जी है । वास्तव में आप के पिता श्री अमोलकचन्द जी ने अपने नाम के अनुरूप ही एक अमोलक - मूल्य निधि प्राप्त की। उस दिन घर में खुशी की लहर दौड़ गयी थी क्योंकि मां रूपांवाई की कोख से सर्व प्रथम ही पुत्र की प्राप्ति हुई थी। मां रूपांवाई ने भी अपने नाम की सार्थकता पुत्र में प्रगट कर दी। क्योंकि 'रूपांबाई' इस नाम के अनुरूप पुत्र में रूप की कमी नहीं थी । इस प्रकार माता-पिता ने पुत्र के गुणों को देखकर ही पुत्र का नाम मोती चन्द रखा । आपके बाद आपकी मां ने किरणवाई, इन्दरचन्द, प्रकाश चन्द एवं अरुण कुमार को जन्म दिया। इस प्रकार श्राप की 15
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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