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________________ :8 “सुन्दर ढंग से प्रकृत्रिम चैत्यालयों की परोक्ष वन्दना कराते हुए उपरोक्त जैन भूगोल पर विस्तृत प्रकाश डाला था। तभी से हमारी यह भावना थी कि यदि सुन्दर बाग-बगीचों एवं द्वीप समृद्रों सहित खुले मैदान में जैन मतानुसार तद्रूप भौगोलिक रचना दर्शाई जावे तो समस्त जैनाजैन जनता को जम्बूद्वीप मुमेरु पर्वत प्रादि की रचना साकार रूप में होने से समझना मग्न हो जावे। ऐसी रचना अपने प्रकार की एक अद्वितीय एवं दर्शनीय स्थल के रूप में देश-विदेश के लोगों के प्राकर्षण का केन्द्र होगी। परम मौभाग्य की बात है कि उक्त रचनात्मक कार्य को क्रियान्वित करने हेतु विदुषी रत्न पू० प्रायिका श्री ज्ञानमती माताजी की पुनीत प्रेरणाओं में दिल्ली में 'जैन त्रिलोक शोधमंस्थान' की मंगल स्थापना की गई है। __ संस्थान के उद्देश्यों के अन्तर्गत प्रमुख रूप से भगवान् महावीर स्वामी के २५००वें निर्वाण महोत्सव की स्मृति को चिर स्थायी बनाने के लिए स्मारक रूप में जैन भूगोल के अन्तर्गत जम्बूद्वीप की वृहत् रचना का कार्य प्रारम्भ हो गया है। संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु दि० जैन समाज नजफगढ़ दिल्ली ने ५० हजार वर्ग गज भूमि प्रदान की है। यहाँ पर ग्रन्थ संग्रहालय के लिए एक विशाल एवं नवीनतम साधनों से युक्त प्रतीव आकर्षक भवन भी होगा। जिसमें सभी प्रकार का जैन साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो सकेगा। रचना कार्य कुशल इंजीनियरों की देख-रेख में सुचारु रूप से
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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