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________________ जन ज्योतिर्लोक ५६ क्षेत्र हैं तथा पुष्करावं में ७२ सूर्य एवं ७२ चन्द्रमा हैं । उनके ३६ वलय में १८ वलय तो दोनों मेरूवों के इधर एवं १८५ वलय मेरूवों के उधर हैं । अतः धातकी खण्ड के ३ वलय के ६ सूर्य ६ चन्द्र, कालोदधि के ४२ सूर्य ४२ चन्द्र एवं पुष्करार्ध के मेरू के इधर के १८ वलय के ३६ सूर्य ३६ चन्द्र सपरिवार जंबुद्वीपस्थ १ सुमेरू पर्वत और धातकी खण्ड के दो मेरू इस प्रकार तीन की ही प्रदक्षिणा देते हैं । किन्तु पुष्करार्ध के २ मेरूवों के उधर के १८ वलय के ३६ सूर्य, ३६ चन्द्र सपरिवार पाँचों [ही मेरूवों की प्रदक्षिणा करते हैं। इस प्रकार पांच मेरूवों की प्रदक्षिणा का क्रम है । कालोदधि समुद्र को वेदो से सूर्य का अन्तराल ५११११० ५०८ याजन है तथा प्रथम वलय के सूर्य से द्वितोय वलय के सूर्य का अन्तराल २२२२१ योजन का है । इसी प्रकार प्रत्येक वलय के सूर्य से अगले वलय के सूर्य का अंतराल २२२२१३ योजन है तथा अन्तिम वलय के सूर्य से मानुषोत्तर पर्वत का अंतराल ११११०५६ योजन का है अतएव पैंतीस वार २२२२१ की संख्या को, २ बार ११११०६६ संख्या को एवं ३६ वार सूर्य विव प्रमाण ६६ ५८६ की संख्या को रख कर जोड़ देने से ८ लाख प्रमाण पुष्करार्ध द्वीप का प्रमाण श्रा जाता है । यथा ここよ -२२२२१ ५४३ ४३५= एवं ११११०६६४२=२२२२१३३३ तथा - ७७७७५० १३६ = २८६ कुल = ८००००० हुआ ।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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