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________________ जैन ज्योतिलोंक मुहूर्त प्रमाण काल लगता है । उसो वोथो को परिधि को भ्रमण द्वारा पूर्ण करने में सूर्य को ६० मुहूर्त लगते हैं तथा नक्षत्र गणों को उसो परिधि को पूर्ण करने में ५६३९४ मुहूर्त प्रमाण काल लगता है । क्योंकि चन्द्रमा मंदगामी है। चन्द्रमा से तेज गति सूर्य की है । सूर्य से अधिक तीव्र गति ग्रहों की है । ग्रहों से भी तीव्र गति नक्षत्रों की एवं इन सबसे तीव्र गति तारागणों की मानी है। लवण समुद्र का वर्णन एक लाख योजन व्यास वाले इस जंबूद्वीप को घेरे हुये वलयाकार २ लाख योजन व्यास वाला लवण समुद्र है । उसका पानी अनाज के ढेर के समान शिखाऊ ऊंचा उठा हुआ है । बीच में गहराई १००० योजन की है । समतल से जल की ऊंचाई अमावस्या के दिन ११००० योजन को रहती है तथा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से बढ़ते-बढ़ते ऊंचाई पूर्णिमा के दिन १६००० योजन को हो जाती है । पुनः कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से घटतेघटते ऊंचाई क्रमशः अमावस्या के दिन ११००० योजन की रह जाती है। तट से (किनारे से) ६५ योजन आगे जाने पर गहराई एक योजन की है । इस प्रकार क्रमशः ६५-६५ योजन बढ़ते जाने पर १-१ योजन की गहराई अधिक-२ बढ़ती जाती है। इस प्रकार ६५००० योजन जाने पर गहराई १००० योजन की हो जाती है । यही क्रम उस तट से भी जानना चाहिये । इस प्रकार
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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