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________________ बैन ज्योतिर्लोक हमेशा हो मेरू को प्रदक्षिणा देते हुये गमन करते रहते हैं मोर इन्हीं के गमन के क्रम से दिन, रात्रि, पक्ष, मास, संवत्सर प्रादि का विभाग रूप व्यवहार काल जाना जाता है। २८ नक्षत्रों के नाम (१) कृत्तिका (२) रोहिणो (३) मृगशीर्षा (४) प्रार्द्रा (५) पुनर्वसू (६) पुष्य (७) आश्लेषा (८) मघा *(8) पूर्वाफाल्गुनी (१०) उत्तराफाल्गुनी (११) हस्त (१२) चित्रा (१३) स्वाति (१४) विशाखा (१५) अनुराधा (१६) ज्येष्ठा (१७) मूल (१८) पूर्वाषाढ़ा (१६) उत्तराषाढ़ा (२०) अभिजित् (२१) श्रवण (२२) घनिष्ठा (२३) शतभिषक (२४) पूर्वाभाद्रपदा (२५) उत्तराभाद्रपदा (२६) रेवती (२७) अश्विनी । (२८) भरिणो ___ नक्षत्रों की गलियां चन्द्रमा की १५ गलियाँ हैं। उनके मध्य में २८ नक्षत्रों को ८ हो गलियाँ हैं। चन्द्र की प्रथम गली में--अभिजित, श्रवण, घनिष्ठा शतभिषज्, पूर्वाभाद्रपदा, रेवतो, उत्तराभाद्रपदा, अश्विनी, • भरिणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी एवं उत्तरा फाल्गुनी ये १२ नक्षत्र संधार करते हैं। तृतीय गली में पुनर्वसू एवं मघा संचार करते हैं। छठी गली में-कृत्तिका का गमन होता है।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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