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________________ उ (३१) 201 contribnte to the increase of population. (The Census of India p 12) (२) बाल्यावस्था में विवाह होजाने से बालक बालिकाला को शिक्षा भी पूर्ण नहीं होने पाती। और वे जीवनापयोगी अवश्यमान पातकरने से बचित रहजाते हैं। और इस ज्ञान के जगान में उन के जीवन'उन्नत नहीं हो पाते । वे बहुधा दुरित होजानि है । प्राचीन काल में बालक और बातिकार्य प्राय गुना के वरीपर शिनामाति के लिए भेज दिय गते थे और पूर्ण वय प्रति करके सर्व प्रकार की शिक्षा से भूपित हो कर जब वे निकलते थे तब उनके विवाह होते थे । इसलिए पचनाने के लिए बडो उभर में शादी करना चारिश और तक बालक नालिजाओं को उचिंत शिनों का प्रबन्ध करना चाहिए। उनको ऐसे सल तमाशे भी नहीं दरने देने चाहिये जिनस कामवालना उरोजिय हो। , । (3) ऊपर हम देखेंगुके हैं कि विवाह का ऐक प्रधान श्य उपयुक्त संतान उत्पन्न करना है। अतएवं डोल्प बय में प्रति उस समय मेजवतकेकि देह और बुद्धि परिपकनहीं होती. है, विशह करना उचित नहीं है । कारण, जबतक जनक जननी के देह और मनकी पूर्णता न हाँगी, तबतक सन्तान सवल शरीर और प्रबलमना न हो सकेंगी। और स्वंय जनक जननी के जावन दुवैल शक्ति होने, निस्तेज, रोगी और सुनहीन होजाते ६। सायही उनकी उमर कम होजाती है। उनकी सन्तान् ।
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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