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________________ कोई भक्त मंदिर में प्रवेश करता है तो वह वहांका दृष्य देखते ही चकित हो जाता है और रोषनी की झगमगाहट से उसकी दृष्टि चकाचौंध हो जाती है। उस समय उसकी मनोवृत्तियां चक्कर में पड़ जाती है और उसे ऐसा मालूम होता है कि मानो वह कोई बड़ा स्वप्न देख रहा हो । अन्य पूजा करने वालो से प्रथम पूजा करने का अवसर पाने की धुन में व पूजन के व द्रव्यादि चढाने के आवेग से भरे हुए भक्त की उस समय जो दशा रहती है उस दशा में उससे यह आशा कदापि संभव नहीं हो सकती कि वह उस समय ठहर कर अपनी सदसदविवेक बुद्धि से यह सोचे कि वह जो कुछ कार्य कर रहा है वह बुद्धिवानी का है या बेसमझी का है। उसे इस बात का भी ज्ञान नहीं होता कि इस प्रकार मूर्ति पूजन से केवल उसकी वासनाओं की तृप्ति होकर वह सत्य से वंचित हो जाता है। पूज्य तीर्थकों के उच्च सिद्धान्तों से अनभिज्ञ होनेसे वह ऐसे आडंबरों में धन का नाश करता है और अपने जीवन के बहुमूल्य समय को अनुपयोगी पूजन विधियों में निरर्थक खोता है। साधुओं के दबाव और डर के कारण श्रावकों ने जरा भी चू न की और स्वार्थी साधुओ की बताई हुई नई पूजन विधियों को शांति पूर्वक स्वीकार कर लिया । यह शोचनीय अवस्था अब भी मौजूद है और जैनों के मूर्तिपूजक संग्रदाय में पिछले कई सौ वर्षों से चली आती है।
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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