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________________ ७९ मूर्तिपूजक अथवा प्रत्येक यात्री इस प्रश्न का उत्तर प्रामाणिकता से और अपनी सदसद्विवेक बुद्धिके अनुसार दे, तो उसको उपरोक्त कथन की सत्यता अच्छी तरह मालूम हो सकती है । ___मूर्तिपूजा के संबंध में एक बात तो वडीही विचित्र है । यदि हम तीर्थकरों की मूर्तियों का सूक्ष्म निरीक्षण करें तो हम को मालूम होगा कि वे सदा ध्यानावस्था में पाई जाती हैं । इससे मालूम होता है कि उनका चित्त बिलकुल अडोल है और उनकी दृष्टि नासिकाग्र लगी हुई है। इससे यह सूचित होता है कि वे न केवल पाप और पुण्य, किन्तु यों कहना चाहिये कि सारे संसार की ओर से उदासीन हैं। सारांश यह है कि मूर्तियों में बाह्य व आंतरिक शान्ति झलकती है। मूर्तिपूजा, विधेय है या नहीं, इस बात को छोडकर हम को बडे खेद के साथ कहना पडना है कि मूर्तिपूजक पूजन के समय मतियों के साथ वडा अन्याय करते हैं । वे गहरे प्यान में नम हुई हुई मूर्तियों को घंटाओं की घनघनाहट से नगाहो फी वेढय ध्वनी से मंत्रों के उटपटांग उच्चारण से जगाते हैं, मोना-चांदी के आभूषणों के भार से लादते । नया मृर्तियां देख सकेंगी दम जागा ने उनको जपरम पार पा सटिक के नेत्र लगान है । इस प्रकार उनके
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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