SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३ जीवन शास्त्र-विहित नियमों के अनुकूल नहीं है, अतएव ऐसे साधुओं के श्रावकों से शास्त्र-विहीत नियमों के अनुसार चलने की और भी कम आशा की जा सकती है। जो साधु परिग्रह रखते हैं, सूत्रों के नियमो के अनुकूल नहीं चलते और संसार के सुखो की खोज में रहते हैं, उनसे यह आशा नहीं की जा सकती कि वे अपने अनुयायियो को सत्य की शिक्षा दें और इसीलिए वे अपने शिष्यों के चरित्र को उत्तमतर बनाने के अयोग्य हैं। वे जैन धर्म के सच्चे सिद्धान्तों का प्रचार करने से डरते हैं, क्यों कि वे जानते हैं कि उनके आचरण में और उनके उपदेशित सिद्धान्तों में जो बहुत बडा भेद दिखलाई देगा उसके कारण उनके प्रति उनके अनुयायियों की श्रद्धा कम हो जायगी व संघ उनको बहिष्कृत फर देगा । इसका फल यह हुआ कि मूर्ति पूजक संप्रदाय के साधु और उनके प्रावक दोनों ही जैन धर्म के असली सिद्धान्तों से परान्मुख होगये । उपसंहार । ऐसी अवस्था में मूर्ति पूजक संप्रदाय न्याय पूर्वक इस यात का दावा नहीं कर नकते कि वे महावीर के अमली और सपचे अनुयायी ६ । इसलिये यही मानना होगा कि वे मूल संप से अलग होगरे है और उन्होंने अपना एक पृथक प्राय बना लिया है।
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy