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________________ ૬૮ करने की आवश्यकता नहीं है, क्यों कि हम अब तक जितने प्रमाण दे चुके हैं वे स्वयं ऐसे दृढ हैं कि निपेक्ष मनुष्य को इस बात में अब कुछ भी संदेह नहीं रहेगा कि जैन सूत्रों मे मूर्तिपूजा का सर्वथा अभाव है । महावीर के निर्वाण के सातसौ वर्ष बाद मूर्तिपूजा का प्रचार हुआ । अब यह प्रश्न स्वाभाविक ही पैदा होता है कि यदि मूर्तिपूजा का प्रचार महावीर ने नहीं किया, तो उसका प्रचार किस तरह हुआ और कब हुआ ? परन्तु इस प्रश्न पर विचार करने का यह स्थान नहीं है । यहां पर इतना ही कह देना पर्याप्त है कि मूर्तियों के सबसे प्राचीन लेखों और उन के संवतों से हम को मालूम होता है कि मूर्तिपूजा का प्रचार आज से १८०० वर्ष पहले या यों कहिए कि महावीर के निर्वाण के ६०० या ७०० वर्ष बाद हुआ है । मूर्तिपूजकों को श्वेताम्बर कहना अनुपयुक्त है । अब हम को यह देखना चाहिये कि श्वेताम्बरों का मूर्तिपूजक संप्रदाय वस्त्रों के रंग के विषय में महावीर के आदेशो के अनुसार चलता है या नहीं | क्यो कि इन्हीं वस्त्रो के कारण जैन साधुओं को अन्य धर्मावलंबी साधुओ से पहिचाना जा सकता है । •
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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