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________________ (५२) इस बात की पुष्टि करने के लिये और दलीलें देना व्यर्थ क्यों कि हम ऊपर काफी दलील दे चुके हैं जिनसे निर्पक्ष मनुष्य यह परिणाम निकाल सकते हैं कि दिगंबर और उनके शास्त्र निस्संदेह अर्वाचीन हैं और असली तथा मूल संघ से उनकी उत्पत्ति पीछे हुई है । दिगंबरों की उत्पत्ति । कैसे अब यह मालूम करना चाहिये कि दिगंबर कब और जुदा हुए | इस विषय में हमको धर्मसागर कृत प्रवचन परिक्षा नामक ग्रंथ से सहायता मिलती है। इस ग्रंथ में दिगंबरों की उत्पत्ति इस प्रकार दी है:-- रथवीरपुर नामक नगर में शिवभूति उर्फ सहस्रमल नामका एक मनुष्य रहता था। वह उस नगर के राजा का खास सेवक था । एक दिन राजा की माता ने उसपर वडा क्रोध किया इसलिये वह तुरंत ही नौकरी छोडकर जैन साधु बन गया । एक बार राजा ने उसको एक बहुमूल्य दुशाला दिया । इस दुशाले से उसको मोह हो गया । उसके गुरु आर्यकृष्ण उसपर बडे कुपित हुए क्यों कि सांसारिक पदार्थों से मोह रखना साधुओं के धर्म के विरूद्ध है और इसलिये उन्होंने उसे दुशाला त्याग देने की सम्मति दी, परन्तु उसने अपने गुरु की आज्ञा का पालन न किया । एक दिन जब शिवभूति कहीं गया हुआ था आर्यकृष्ण ने
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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