SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०) " मथुरा से कुछ लेख ऐसे मिले हैं जिन से इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलजाता है कि इसवी सन् की पहली सदी में श्वेतांबर संप्रदाय का अस्तित्व था। ये लेख जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के पदों पर मिले हैं और इनमें कनिष्क हुविष्फ और वासुदव नामक प्रसिद्ध राजाओं का संवत् दिया है । ये राजा सिथिया देश के थे, परन्तु भारतवर्प पर भी राज्य करते थे । मालूम होता है कि इनका संवत् अब शक __ के नाम से प्रसिद्ध है, जो ईसवी सन ७८-७९ से शुरू होता है । इन लेखो में लिखा हुआ है कि ये मूर्तियाँ श्वेताम्बर ___ संप्रदाय के अनुयायियों की भक्ति का स्मारक हैं । इन मूर्तियो की स्थापना करने वाले दिगंबर न थे किन्तु श्वेताबर थे, इस बात का पता यों लगता है कि मूर्तियों पर जो लेख हैं उनमे जैन साधुओं के कुछ गणो के नाम लिखे हैं और इन गणों के नाम श्वेतांबरों के कल्प सूत्र की स्थविरावली में भी मिलने हैं। अतएव यह सिध्द होता है कि ये मूर्तियां श्वेतावर संप्रदाय की हैं। इस बात का हम एक उदाहरण देते हैं । इन मूर्तियो के लेखों मे से एक लेख कनिष्क के राज्य काल के नवे वर्ष का ( अर्थात् ईसवी सन् ८७-८८ का ) है । उममे लिखा है कि उस मूर्ति की स्थापना कोटिया ( अथवा कोटिक गण ) के नागनंदिन नामक धर्मगुरु के उपदेश से विकटा नामक एक जैन श्राविका ने की थी । इस गण की स्थापना स्थविरावली के अनुसार स्थविर सुस्थित
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy