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________________ (३३) देवर्द्धि ने उस समय की उपलब्ध हस्तलिखित सामग्री को सिद्धांत के रूप में व्यवस्थित कर दिया और जो ग्रन्थ उस समय लिपिबद्ध न थे उनको विद्वान् धर्माचार्यों के मुख से सुन कर लिख डाला । इसलिये इस सिद्धान्त की वह श्रावृत्ति जिसका सम्पादन देवर्द्धि ने किया है, उन शास्त्रों का केवल सुव्यवस्थित रूप है जो उनके पहले प्रायः उसी रूप में मौजूद था।" (४) " परंतु एक बडी महत्वकी दलील यह है कि हमको सिद्धांत मे ग्रीस की ज्योतिर्विद्य की गंध भी नहीं आती।xxx चुंकी ग्रीस की ज्योतिर्विद्या का पदार्पण भारतवर्ष में इस्वी सन् की तीसरी या चौथी शताद्वि से माना जाता है इसलिये जैनों के शास्त्र उससे भी पहिले लिपिबद्ध हुए थे"। (५) " हम सिद्ध कर चुके हैं कि जैन सिद्धांत के सब से प्राचीन ग्रंथ ललित विस्तार की गाथाओं से भी पुराने हैं। चूकि यह कहा जाता है कि ललित विस्तार का अनुवाद चीनी भाषा में इस्वी सन् ६५ के लगभग हुवा था इसलिये हम वर्तमान जैन साहित्यकी उत्पत्ति ईसवीसन से भी पहलेकी मानते हैं"। (६) " यदि हमारी उपरोक्त खोज का परिणाम मानने के योग्य है, क्यों कि मुझे उसके विरुद्ध कोई दलील नहीं देख पड़ती-तो वर्तमान जैन साहित्य की उत्पत्ति इसा से ३०० वर्ष से अधिक ज्यादा पहिले नहीं मानी जा सकती।
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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