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________________ (२१) कुठाराघात किया, धर्म प्रचारकों की स्वार्थपरता को प्रकट किया, विना जाति और धर्म भेद के अपने द्वार समस्त प्राणियो के लिये खोल दिये और सार्वभौमिक दयाभाव और भ्रातृभाव के सिद्धान्तो को, कि जो जैन धर्म की विशेषताएं हैं, दूर दूर तक फैला दिया। सारांश यह है कि जैन धर्म ने किसी भी जीवधारी को अपनी पवित्र छत्रछाया के बाहर नहीं किया। जैन धर्म के विषय में झूठी बाल फैलाने के कार्य । इस प्रकार के हिन्दू-धर्म पर स्मरणीय आक्रमणों के कारण जैन धर्म ने अपने लिये अनेक शत्र उत्पन्न कर लिये और उसके परिणाम मे उसे बहुत कुछ क्षति उठानी पड़ी। उन्होंने जैन धर्म की निन्दा करने का और उसके विषय मे भयकर भ्रामक विचारों को फैलाने का कोई अवसर मात्र हाथ से न जाने दिया। उन्होंने जैन सिद्धांतों की बड़ी खींचातानी की है और उसके विषय में सब प्रकार से विरोधीभाव पैदा करने में कोई कमर नहीं रक्खी । इर्षा और द्वेष के कारण कुछ लोगों ने तो यहां तक कह डाला है कि " हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेजन मंदिरम्" अर्थात् मदमत्त हाथी के आक्रमण करने पर भी किसीने अपनी रक्षा के लिये जैन मंदिर में प्रवेश न करना चाहिये। संस्कृत नाटको के पढने से मालूम होता है कि उनमें कई स्थानो पर जैन यतियो को नीचे दर्जे के सेवकों की तथा
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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